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________________ 168 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन कुछ समय पहले तक किसी दूसरी जाति, वर्ण अथवा देश की कन्या के साथ विवाह सम्बन्ध अनैतिक माना जाता था, किन्तु आजकल इसमें अनैतिकता की तो बातें ही क्या, प्रगतिशीलता मानी जाने लगी है। विधवा विवाह आदि के बारे में भी ऐसा ही है। गमनागमन, आहार आदि की नैतिक मान्यताओं में भी परिवर्तन आ रहा आचार और व्यवहार के बारे में भी इसी प्रकार की स्थिति है। भौतिक, रसायन और जीवविज्ञान की नई खोजों ने मानव की पुरानी नैतिक मान्यताओं को काफी परिवर्तित कर दिया है। इन सभी बातों से नैतिक निर्णय प्रभावित हुए हैं। यद्यपि मानव स्वतन्त्र इच्छाशक्ति का धनी है, वह उसी के आधार पर निर्णय करता है पर अभिलाषाओं का मूल्यांकन करने के कारण वैज्ञानिक उपलब्धियों से प्राप्त विशिष्ट साधन और ज्ञान का उपयोग भी करता ही है। इसी रूप में वैज्ञानिक अनुसन्धान उसके भौतिक निर्णय को प्रभावित करते हैं। तार्किक तर्क बुद्धि का कार्य है। बुद्धि ऊहापोह करने की क्षमता को कहा जाता है। सद्-असद्, शुभ-अशुभ, उचित-अनुचित आदि का निर्णय बुद्धि ही करती है। इस प्रकार नैतिक निर्णय में बुद्धि का विशेष हाथ रहता है। किन्तु मानव सिर्फ बुद्धि के आधार पर चलने वाला प्राणी नहीं है। उसमें संवेग, भावनाएँ, इच्छाएँ आदि भी होती हैं। उन इच्छाओं की प्रेरणा और मूल्य भी होता है। उन्हें संतुष्ट करना भी मानव के लिए अवश्यम्भावी है। अतः मानव का नैतिक निर्णय बुद्धि और संवेगों के समन्वय के आधार पर होता है। नैतिक निर्णय की विशेषताएँ अन्य निर्णयों की अपेक्षा नैतिक निर्णयों की कुछ ऐसी विशेषताएँ हैं जो इनका पृथक स्वरूप निर्धारित करती हैं। ऐसी कुछ विशेषताएँ निम्न हैं (1) मूल्यात्मकता-अन्य प्रकार के निर्णय तथ्यात्मक होते हैं जैसे-सूर्य पूर्व दिशा से निकलता है; किन्तु नैतिक निर्णय मूल्यात्मक होते हैं, यह व्यक्ति के चरित्र का मूल्यांकन करते हैं। उदाहरणार्थ-यह कहना कि अमुक व्यक्ति
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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