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________________ नैतिक निर्णय / 167 प्राप्ति हो जाती है । वह अपनी समन्वयात्मक तथा ऋतम्भरा ( सत्यग्राहिणी ) प्रज्ञा से उचित एवं नैतिक निर्णय ले सकता है तथा उसे बिना किसी को ठेस पहुंचाए कार्यान्वित कर सकता है। प्रतिक्रिया : अन्य जनों का व्यवहार प्रकृति का यह नियम है कि प्रत्येक क्रिया की प्रतिक्रिया होती है । आप जितनी शक्ति से गेंद को किसी दीवार पर फैंकेंगे, टकराकर वह उतने ही वेग से वापिस लौटेगी। प्रकृति का यह सिद्धान्त मानव समाज और मानव मन पर भी लागू होता है । मनुष्य सामाजिक प्राणी है, उसका अन्य व्यक्तियों से सम्पर्क रहता है, अतः अन्य व्यक्तियों के व्यवहार की प्रतिक्रिया मानव मन पर होती है, तथा मानव जैसी भी क्रिया अन्य व्यक्तियों के साथ करता है, उसकी प्रतिक्रिया अन्य व्यक्तियों पर होती है । क्रिया, प्रतिक्रिया, अनुक्रिया (action, reaction, response) यह चक्र सतत चलता रहता है । समाज के अन्य व्यक्तियों ने किसी एक व्यक्ति के प्रति 'सद्व्यवहार किया तो उसके मन में उचित प्रतिक्रिया होगी । मानव स्वयं भी नैतिक बनेगा और समाज में भी नैतिकता का प्रसार होगा । चोर, डाकू, लुटेरे बनने का एक कारण यह भी है कि समाज इन व्यक्तियों के साथ अनैतिकता का व्यवहार करता है, उनकी उचित बात को भी अनुचित मानकर प्रताड़ित, तिरस्कृत, अपमानित करता है, परिणामतः सीधे सादे व्यक्ति भी समाज से विद्रोह कर बैठते हैं और चोर, डाकू, हत्यारे, अपराधी बन जाते हैं। नैतिक निर्णय में इसीलिए समाज के अन्य व्यक्तियों का व्यवहार भी प्रमुख भूमिका अदा करता है । वैज्ञानिक प्रभाव आधुनिक युग विज्ञान का युग है। आज का मानव वैज्ञानिकों द्वारा कही बात को सत्य मानता है। विज्ञान ने खगोल, भूगोल, आहार, आदि सभी विषयों में विस्मयकारी खोजें की हैं और सप्रमाण इन्हें मानवों के समक्ष रखा है। इसका परिणाम यह हुआ है कि शास्त्र और प्राचीन मान्यताओं से मानव की आस्था डगमगा गई है। नीति सम्बन्धी मान्यताओं में भी बहुत परिवर्तन आ गया है ।
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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