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नैतिक निर्णय / 165
परिस्थितियाँ और देश-काल की रूढ़ियाँ
नैतिक निर्णयों को प्रभावित करने वाले दूसरे तत्व हैं--परिस्थितियाँ और सामाजिक रूढ़ियाँ। ____ मानव का जीवन अत्यन्त जटिल है। प्रत्येक निर्णय करने में उसे जटिल संघर्ष से गुजरना पड़ता है। एक ओर उसे उसकी स्वयं की इच्छाएँ, वासनाएँ
और निजी स्वार्थ अपनी ओर खींचता है तो दूसरी ओर बुद्धि तर्क करती है, परार्थ जोर मारता है।
यह स्वार्थ और परार्थ का संघर्ष ही ऐसी जटिल स्थिति उत्पन्न कर देता है जो उसके नैतिक निर्णय को प्रभावित कर देता है।
संक्षेप में, नैतिक परिस्थिति वह विषम दशा है जिसमें व्यक्ति के सामने क्या करना उचित है और क्या नहीं करना उचित-इसका निर्णय उसे करना पड़ता है।
यह परिस्थिति कभी-कभी इतनी जटिल हो जाती है कि मानव मोह विमूढ़ होकर रह जाता है। ऐसी ही परिस्थिति महाभारत युद्ध के समय अर्जुन के समक्ष आई थी। उसने मोह-विमुग्ध होकर अस्त्र-शस्त्र रख दिये थे, स्व-कर्तव्य से विरत हो गया था। उस समय श्रीकृष्ण के समझाने से उसके मन-मस्तिष्क से मोह का पर्दा हटा और वह स्वकर्तव्य पालन के लिए तत्पर हुआ।
नैतिक परिस्थिति का लक्षण
नैतिक परिस्थिति क्या है ? इसको समझने के लिए नीतिशास्त्र मनीषियों ने तीन लक्षण बताये हैं।
(1) नैतिक चेतना (Moral Consciousness)-इसका तात्पर्य मानव की बुद्धि और अहं (Intellect and Ego) का जाग्रत रहना है। जटिल परिस्थिति में भी मानव बुद्धि से ही काम लेता है। उसे शुभ-अशुभ और उचित-अनुचित का ज्ञान रहता है। इस ज्ञान को नीतिशास्त्रीय दृष्टिकोण से नैतिक चेतना कहा गया है।
(2) नैतिक संकल्प (Moral Alternative)-किसी एक समस्या के समाधान के लिए एक से अधिक विकल्पों का होना। उदाहरणार्थ-स्वार्थ और परार्थ का विकल्प। नैतिक चेतना इन विकल्पों की ओर संकेत करती है और व्यक्ति इनमें से किसी एक विकल्प को साधन के रूप में चुनता है।