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________________ 162 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन (6) अभिप्रेरणा और अभिप्राय-अभिप्रेरणा शब्द द्विअर्थी है। इसका प्रथम अर्थ है-व्यक्ति को काम करने के लिए उत्तेजित करने वाली दशा या शक्ति। दूसरा अर्थ है-वह शक्ति या अवस्था जो व्यक्ति को अमुक कार्य के लिए आकर्षित करे। अभिप्रेरणा को विद्युत शक्ति के उदाहरण से समझाया जा सकता है। विद्युत में प्रकाशत्व और चुम्बकत्व दोनों होते हैं। बल्ब में इसके प्रकाशत्व गुण की अभिव्यक्ति होती है और पंखे आदि में चुम्बकत्व गुण की। विद्यार्थी के लिए विद्याध्ययन करने के लिए कालेज जाने हेतु उत्तेजित करना तथा शिक्षा प्राप्ति के लिए आकर्षित करना-दोनों ही शिक्षा की अभिप्रेरणा के कार्य हैं। नीतिशास्त्र में, व्यक्ति इच्छा, भावना आदर्श आदि का आकर्षण तथा तदनुरूप कार्य करने की उत्तेजना-दोनों ही अभिप्रेरणा (Motivation) हैं। सेन गुप्ता के शब्दों में-अभिप्राय कर्ता के मस्तिष्क पर प्रभाव डालने वाली सभी निषेधात्मक और प्रतिषेधात्मक आदर्शात्मक शक्तियों का योग है।' इस दृष्टि से अभिप्राय की सीमा बहुत विस्तृत है। जो कुछ हम सोचते हैं और जो कुछ हमारे विचार में न भी हो, वह सब अभिप्राय के अन्तर्गत आ जाता है। बेन्थम ने अभिप्राय के अन्तर्गत उन कार्यों को भी परिगणित कर लिया है जो न चाहते हुए भी व्यक्ति को करने पड़ते हैं। उदाहरणार्थ-माता-पिता बच्चे को दण्डित नहीं करना चाहते पर उसके सुधार के अभिप्राय से सजा देनी ही पड़ती है। ___अभिप्राय में अभिप्रेरण अन्तर्निहित होता है, इसलिए यह दोनों परस्पर घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं। यह निश्चित है कि प्राणी मात्र का कोई भी कार्य बिना किसी अभिप्राय के नहीं होता। मनुष्य के तो सभी कार्य साभिप्राय होते हैं। अपराध शास्त्र का तो यह प्रमुख सिद्धान्त ही है Find the motive and you will get the culprit (अभिप्रेरण-अभिप्राय को जान लो तो तुम अपराधी को पकड़ लोगे।) 1. Intention is the sum total of all positive and negative ideal forces acting upon the mind of agent. -I.B. Sen Gupta
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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