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नैतिक निर्णय / 159
तेजोलेश्या वाला मानव शुभ प्रवृत्ति वाला भी होता है, उसकी मनोवृत्तियाँ और क्रिया कलाप नैतिक होते हैं। नीतिशास्त्र के अनुसार उसे नैतिक मानव कहा जा सकता है। पद्म और शुक्ललेश्या की स्थिति नैतिक उच्चता के स्तर
इस प्रकार स्पष्ट है कि जैन दर्शन ने लेश्या और संज्ञाओं के रूप में जिन मनोवैज्ञानिक प्रेरक तत्वों का वर्णन किया है, उन्हें ही पाश्चात्य मनोविज्ञान शास्त्रियों ने 'मूलप्रवृत्ति' कहा है। ___अब मनोविज्ञान के अनुसार नैतिक विवेचन किस प्रकार किया जाता है, यह जानना आवश्यक है। नैतिक विवेचन की प्रवृत्ति
नैतिक चेतना मानव की अपनी निजी विशेषता है। वह नैतिक चेतना ही शुभ-अशुभ और उचित-अनुचित का विवेचन कर के निर्णय करती है। इस निर्णय की प्रक्रिया में कई मनोवैज्ञानिक तत्त्व के प्रभावशील होते हैं। यह तत्व
(1) विभिन्न इच्छाओं की चेतना (Consciousness of Various
desires) (2) परस्पर विरोधी इच्छाओं का संघर्ष (Conflict of mutually
contradictory desires) (3) इच्छाओं के परिणामों का नैतिक विश्लेषण (Moral analysis of
the effects fo desires) (4) नैतिक निर्णय (Moral Judgment) (5) चरित्र एवं आचरण (Character and Conduct) (6) अभिप्रेरणा तथा अभिप्राय (Motivation and intention)
(1) विभिन्न इच्छाओं की चेतना-इच्छा, जैसा कि संज्ञाओं के वर्णन से स्पष्ट है, प्राणी मात्र को होती है। किन्तु पेड़-पौधों की इच्छा अव्यक्त है। ज्यों-ज्यों चेतना का स्तर विकसित होता जाता है, इच्छा भी व्यक्त होती जाती है। इस क्रम से मानव सर्वाधिक विकसित चेतना वाला प्राणी है अतः उसकी इच्छाएँ व्यक्त भी होती हैं और साथ ही विभिन्न प्रकार की भी होती हैं।
इच्छा, वास्तव में प्राणी की शारीरिक, मानसिक आदि किसी भी प्रकार के अभाव की अभिव्यक्ति है। प्राणी उस अभाव की कमी को पूरा करना