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________________ नैतिक मान्यताएँ / 153 इसीलिए कहा गया है - वास्तव में स्वतन्त्रता नैतिक नियम का अस्तित्व तत्व है और नैतिक नियम स्वतन्त्रता का ज्ञान तत्व है । ' इसका अभिप्राय यह है कि नैतिक नियमों का अस्तित्व ही स्वतन्त्रता पर निर्भर है और स्वतन्त्रता का ज्ञान ही नैतिक नियम है। आशय यह है कि मानव अपनी स्वतन्त्रता को समझेगा, सही स्थिति को जानेगा तभी वह नैतिक नियमों का पालन कर सकेगा । वस्तुतः नीति - पालन का ध्येय भी आत्म-स्वातन्त्र्य की प्राप्ति ही है । क्योंकि भारतीय और भारतीयेतर सभी नीतिशास्त्री इस एक लक्ष्य पर सहमत हैं कि-नीति का उद्देश्य निःश्रेयस् और सुख की प्राप्ति है । और यह पूर्ण सुख आत्मा के सभी बन्धनों से मुक्त होने पर प्राप्त होता है अतः स्वतन्त्रता नीतिशास्त्र का सर्वोपरि आधार है । 1. Freedom is the ratio essendi of the moral law, while the moral law is the ratio cognoscendi of freedom. -Kant - See Kant's selection, p. 339, footnote.
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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