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नैतिक मान्यताएँ / 149
इस सिद्धान्त का अनुसरण करने पर मानव के भावी क्रिया-कलापों के बारे में न कोई अनुमान लगाया जा सकता है और न ही किसी प्रकार की भविष्यवाणी की जा सकती है।
जब कि ऐसा होता नहीं, मानव के विषय में भविष्यवाणी की जाती हैं और वे सही भी निकलती हैं।
इस दृष्टि से यह सिद्धान्त अपूर्ण और एकांगी है।
नियतिवाद इच्छा-स्वातंत्र्य को पूर्ण रूप से स्वतंत्र नहीं मानतो अपितु इसकी धारणा है कि मानव के कर्म पहले से ही कार्य-अभ्यास, भावनाओं एवं स्थायीभावों के द्वारा सुगठित चरित्र द्वारा नियत होते हैं और मानव को चरित्र के प्रभाव से ही कार्य करने पड़ते हैं इसके अतिरिक्त वे मानव की संकल्प शक्ति को वंशपरम्परा (Heredity) और पर्यावरण (Environments) से भी प्रभावित मानते हैं।
इस सिद्धान्त से तो यह फलित होता है कि समान स्वभाव, विचार, वंशपरम्परा तथा वातावरण वाले व्यक्ति एक सा ही नैतिक या अनैतिक आचरण करेंगे जबकि प्रत्यक्ष में ऐसा देखा नहीं जाता। एक माता-पिता के यगल पुत्रों में से भी, सभी प्रकार की समानता होते हुए भी, एक का आचरण नैतिक और सभी के लिए सुखप्रद होता है, जबकि दूसरा घोर अनैतिक आचरण करके अपने और परिवार तथा समाज के लिए त्रासदायी बन जाता है।
अतः यह सिद्धान्त भी अपूर्ण और एकांगी है।
आत्मनियमिततावाद या आत्मनियन्त्रणवाद-मध्यममार्गी है। यह इच्छा-स्वातंत्र्य को न नियम मानता है और न इसको असीमित स्वतंत्रता प्रदान करता है, अपितु संकल्प-स्वातंत्र्य को आत्मा द्वारा नियन्त्रित तथा नियमित स्वीकार करता है। नीतिशास्त्र में इसे आत्म-निर्धारणवाद (self-determinism) कहा गया है। ____ आत्म-निर्धारण के दो तत्व हैं-(1) प्रतिषेधक और (2) विधायक। प्रतिषेधक का अर्थ बलात्कार या दबाब से रहितता और विधायक आत्मा का अपना निजी निर्धारण है। दूसरे शब्दों में प्रतिषेधक तत्व पर की अपेक्षा से है और विधायक तत्व स्व की अपेक्षा से। ___ज्यों-ज्यों चरित्र का विकास होता है, नैतिकता का स्तर उच्च से उच्चतर होता है त्यों-त्यों स्वतंत्र-इच्छा का-आत्म-निर्धारण का विधायक तत्व प्रबल होता जाता है और अन्य निर्धारण का तत्व क्षीणतर होता जाता है।