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________________ 140 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन यत्र-तत्र उपलब्ध होते हैं। किन्तु इन्होंने स्वतन्त्र रूप से नीति पर कोई चिन्तन नहीं किया। नीति सम्बन्धी चिन्तन शापेनहावर, काण्ट, नीत्शे, फ्रोबेल, जॉन ड्यूई, एडलर जुंग, सिजविक आदि विद्वानों ने प्रस्तुत किया। यह सभी नीति चिन्तक और नीतिशास्त्री हैं। नीति के स्वरूप पर इन्होंने गहरा विश्लेषण किया, उसके सिद्धान्त निर्धारित किये, नीतिशास्त्र कला है अथवा विज्ञान इस पर खूब विवाद किये, ग्रंथ लिखे; किन्तु इनमें से कोई भी नैतिक जीवन व्यतीत करने वाला न रहा, इनके जीवन में नैतिकता का समावेश नाम मात्र को था। इन सभी की शैली विवेचनात्मक है। इनकी रचनाओं से पाठक का मस्तिष्क तो प्रभावित होता है, किन्तु हृदय प्रभावित नहीं होता, उसे नैतिक जीवन जीने की प्रेरणा नहीं मिलती। संक्षेप में भारतेतर तथा पश्चिमी सभ्यता तथा संस्कृतियों के प्राचीनतम ग्रंथों में, जो कि वास्तव में संतों तथा धर्मोपदेशकों के उपदेशों के संकलन हैं, उनमें तो नीति सम्बन्धी कथन उपदेशात्मक शैली में प्राप्त हो जाते हैं। किन्तु सोलहवीं शताब्दी के बाद के लगभग सभी ग्रन्थ साहित्य की गद्य विधा और विवेचनात्मक शैली में लिखे गये हैं। इनमें नीति-सम्बन्धी ऊहापोह तो मिलता है। किन्तु नीति-कथन की शैलियों का अभाव सा ही दृष्टिगोचर होता है। जैसी नीति-शैलियाँ भारतीय संस्कृति में उपलब्ध होती हैं, वैसी भारतेतर साहित्य में बहुत ही अल्पमात्रा में प्राप्त होती हैं।
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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