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________________ नीतिशास्त्र की प्रणालियाँ और शैलियाँ / 139 पंचतंत्र इस शैली का सबसे सफल ग्रन्थ कहा जा सकता है। उपदेशात्मक शैली-इस शैली में सीधा-सादा नीति का उपदेश दिया जाता है। संत, महात्मा तथा उपदेशकों ने अधिकांशतः इस शैली का उपयोग किया है। संत, चूँकि सरलहृदय होते हैं, इसलिए वे सरल शब्दों में अपनी बात कह देते हैं; किन्तु इनकी सत्यपूत वाणी भी अमोघ होती है, श्रोताओं पर उसका यथेष्ट प्रभाव पड़ता है। अतः नीति की यह शैली भी सफल है। ____ पाश्चात्य जगत में सूक्त्यात्मक शैली बाइबिल में मिलती है। इसमें ईसामसीह के उपदेश संकलित हैं। कुरान शरीफ भी हजरत मुहम्मद के उपदेशों का संकलन है। इन्होंने भी उपदेशों के माध्यम से नीति की शिक्षाएं दी हैं। प्राचीनतम पाश्चात्य मनीषी, यूनानी चिन्तक सुकरात है। उसने विविध प्रकार के उपदेश दिये और सिद्धान्त निर्धारित किये। उसके विचारों को प्लेटो आदि ने गति दी। उसकी रचना poetica आदि में भी नीतिवचन खोजे जा सकते हैं। ____ पाश्चात्य जगत में फ्रांस की राज्यक्रान्ति के बाद जो पुनर्जागरण हुआ, इसके बाद ज्ञान-विज्ञान की प्रगति हुई, साहित्य में भी गतिशीलता आई। Chaucer के Canterbury Tales तथा Shakespeare के सोनेट और नाटकों में नीति वचन मिल जाते हैं, उदाहरण के लिए Everything glitters is not gold. -Merchant of Venice (प्रत्येक चमकने वाली वस्तु स्वर्ण नहीं होती) Beauty provoketh thieves rather sooner than gold. (सुन्दर स्त्री, स्वर्ण की अपेक्षा चोरों को शीघ्र आकर्षित करती है) -As you like it. Kindness is divine. --Merchant of Venice (क्षमा दैवी गुण है) Vanity is the last evil of greats. -Milton : Paradise Lost (अभिमान महान व्यक्तियों की बुराई है) आदि नीति वचन महान् साहित्यकारों के साहित्य में उपलब्ध हो जाते हैं। इसी प्रकार के नीतिवचन Longfellow, Shelley, Tennyson, Robert Browning, Wordsworth आदि कवियों की कविताओं में भी 1. रहीम ग्रन्थावली
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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