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________________ 138 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन मणवयकायहिं दय करहि जेम ण ढुक्कइ पाउ। उरि सण्णाहे बद्धइण अवसि ण लग्गइ घाउ ॥' (मन, वचन और काया से दया करो जिससे पाप न आये। हृदय (वक्षस्थल), पर कवच बांधने से घाव नहीं लगता।) यहाँ कवच के उदाहरण से दया को पुष्ट किया गया है। इसी प्रकार के अनेक उदाहरण उत्तराध्ययन सूत्र से उद्धृत किये जा सकते हैं। इसी शैली का एक छोटा दोहा रहीम का भी है रहिमन ओछे नरन ते, तजौ वैर अरु प्रीति। काटे-चाटे स्वान के, दुहू भाँति विपरीत ॥ यहाँ कुत्ते के चाटने और काटने का उदाहरण देकर क्षुद्रबुद्धि मानवों के साथ शत्रुता और मित्रता दोनों को ही त्यागने की नीति बताई गई है, कहा गया है इनका प्रेम और द्वेष दोनों ही बुरे हैं। उर्दू में भी ऐसा ही एक शेर है कमीनों से तो बस साहब सलामत दूर की अच्छी। न इनकी दोस्ती अच्छी न इनकी दुश्मनी अच्छी॥ उदाहरण शैली के उद्धरण संस्कृत साहित्य में भी उपलब्ध होते हैं। कथात्मक शैली-इस शैली में कथाओं द्वारा नीति की शिक्षा दी जाती है। जैन परम्परा के भाष्य और चूर्णि में कथाओं के माध्यम से उपनय द्वारा नीति की शिक्षा दी गई है। ___ज्ञातासूत्र तथा उत्तराध्ययन सूत्र में इस प्रकार की बोधप्रद कथाओं द्वारा विविध शिक्षा दी गई है। यही शैली बौद्ध जातक कथाओं में तथा रामायण एवं महाभारत महाकाव्यों में भी अपनाई गई है। यहाँ तक कि शेखसादी के गुलिश्ताँ में भी यही शैली मिलती है। मध्ययुग में प्रचलित किस्सा तोता-मैना में भी तोता और मैना एक-एक कथा कहते हैं और फिर नीति की शिक्षा देते हैं। प्रभविष्णुता की दृष्टि से यह नीति की सबसे सफल शैली कही जा सकती है; क्योंकि कथात्मकता होने से पाठक अथवा श्रोता की रुचि भी लगी रहती है और उसे जीवन-व्यवहारोपयोगी शिक्षा भी मिल जाती है। 1. सावय धम्म, पृ. 60 2. रहीम ग्रन्थावली
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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