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________________ नीतिशास्त्र की प्रणालियाँ और शैलियाँ / 137 दिढ लोह संकलाण अन्नण पि विविह पास बंधाणं। ताणां चिय अहियर वाया बंधं कुलीणस्स ॥ (दृढ़ लोहे की श्रृंखला तथा अन्य भी बहुत से बन्धन हैं, पर कुलीन के लिए वचन का बन्धन सबसे बड़ा है।) इसी प्रकार की नीति शिक्षाएँ गाथा-शैली में पालि भाषा में भी दी गई हैं। अन्योक्ति शैली-नीतिशास्त्र की यह शैली अधिक लोकप्रिय रही है। इसमें अन्य को लक्ष्य करके वक्ता अपनी बात कहता है। इससे श्रोता अथवा पाठक रस भी लेता है और सहज ही उसे नीति की शिक्षा भी मिल जाती है। मध्ययुग में इस शैली का प्रचलन अधिक रहा। प्राकृत भाषा की एक अन्योक्ति देखिए वायस साण खराइ निवारिया, हु हवन्ति असुइरुइ। हंस करि सिंह पमुहा न कयावि पणुल्लयावि पुणो॥' (कौवा, कुत्ता, गधा आदि मना करने पर भी गंदगी की ओर जाते हैं किन्तु हंस, हाथी और सिंह प्रेरित करने पर भी उधर नहीं जाते।) यहां कौआ आदि दुर्जन के प्रतीक हैं और हंस आदि उत्तम प्रकृति वालों के। कौवा आदि तथा हंस आदि को लक्ष्य करके कही गई यह उक्ति क्रमशः निम्न प्रकृति वाले मानवों तथा उत्तम स्वभाव वाले व्यक्तियों के लिए है। इसी प्रकार की अन्योक्तियां संस्कृत नीति काव्य में भी हैं तथा हिन्दी नीतिकाव्य में भी बहुतायत से मिलती हैं। बिहारी की सतसई में इस शैली के बहुत ही प्रभावशाली उदाहरण मिलते हैं। देखिए को निकस्यो इहि जाल परि, कत कुरंग अकुलात। ज्यों-ज्यों सुरझि भज्यो चहति, त्यों-त्यों उरझत जात ॥ यहां हिरन की ओर संकेत करके मानव को नीति की शिक्षा दी गई है कि जितना स्त्री के माया-जाल से सुलझकर निकलना चाहता है, उतना ही और अधिक उलझता जाता है। उदाहरण शैली-नीतिकारों ने अपने कथन को स्पष्ट और प्रभविष्णु बनाने के लिए उदाहरण अथवा दृष्टान्तों का सहारा भी लिया है। प्राकृत भाषा की एक सुभाषित गाथा देखिए1. डा. सरयूप्रसाद अग्रवाल : प्राकृत विमर्श, लखनऊ, सं. 2009, पृ. 6 2. वी. एम. शाह : प्राकृत सुभाषित संग्रह, 1935, सूरत, पृ. 499 3. बिहारी सतसई
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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