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________________ नीतिशास्त्र की प्रणालियाँ और शैलियाँ / 135 प्रणाली भी कहा जा सकता है; जहाँ प्रत्येक आयाम को उसका उचित महत्व प्रदान किया जाता है। नीतिशास्त्र की शैलियाँ नीति साहित्य की ऐसी विधा है, जिसमें प्रेषणीयता एक अनिवार्य तत्व है। जिस मनीषी, लेखक, कवि के कथन अथवा काव्य में जितनी ही अधिक प्रेषणीयता होगी, पाठक उतना ही अधिक प्रभावित होगा और उसके हृदय पर वह नीतिवाक्य सदा के लिए अंकित हो जायेगा, यदा-कदा उसके स्मृतिपटल पर गहराता रहेगा। प्रेषणीयता के लिए भाषा का सरल और सुबोध होना अतिआवश्यक है; कठिन और दुर्बोध्य शब्दों में कही हुई बातें सामान्य जन न तो हृदयंगम कर पाते हैं और न उनकी स्मृति में ही वे शब्द रह पाते हैं, उन शब्दों को न समझने के कारण लोग न उनमें रस ले सकते हैं और न ही उचित अवसर पर उनका उपयोग कर सकते हैं। अपने कथन को प्रभावशाली बनाने के लिए आवश्यक है कि कम शब्दों में अपनी बात कही जाय। दूसरी विशेषता है-उपमा द्वारा अपने कथन की पुष्टि की जाय। तीसरी बात है-शब्द योजना चुभती और पैनी हो। चौथी बात है-चोट सीधी न हो, किसी को इंगित करके कही जाय। इसी प्रकार की अन्य शैलीगत विशेषताएँ हो सकती हैं। इन विशेषताओं के आधार पर नीति-कथनों की विभिन्न शैलियाँ प्रवर्तित हुईं। सूक्ति शैली-यह शैली अत्यधिक प्राचीन है। इसमें कम शब्दों में नीति की बात कह दी जाती है। भगवान महावीर के अनेक कथन इसके प्रमाण हैं। आचारांग, सूत्रकृतांग तथा उत्तराध्ययन, दशवैकालिक, आदि प्राचीन आगमों में ऐसी अनेक सूक्तियाँ मिलती हैं। 'कडाण कम्माण न मोक्ख अत्थि"-जैसे सूक्ति वाक्य पाप तथा अनैतिक कर्मों से मानव को विरत करने के लिए काफी प्रभावशाली हैं। ___उपमानों से पुष्ट शैली-उपमानों से पुष्ट सूक्ति वचन जैन भाष्य साहित्य में काफी मात्रा में उपलब्ध होते हैं। व्यवहारभाष्य पीठिका की एक ही गाथा इस संदर्भ में यथेष्ट होगी
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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