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________________ नीतिशास्त्र की प्रणालियाँ और शैलियाँ / 133 अपवाद मार्ग पर चलता है और उस परिस्थिति के समाप्त होते ही पुनः उत्सर्ग मार्ग पर चलने लगता है। लेकिन अपेक्षात्मक प्रणाली अनपेक्षात्मक प्रणाली को कोई स्थान नहीं देती, शाश्वत नैतिक मूल्यों का इसकी दृष्टि में कोई महत्व नहीं होता। यह सिर्फ बाहरी रीति-रिवाजों पर ही केन्द्रित रहती है, उन्हीं में नैतिक नियमों के निर्धारण के प्रयास से लगी रहती है। सामाजिक गतिविधियों को देखती है। लेकिन यह संसार बहुत विशाल है। देश-काल की परिस्थितियाँ भी बहुत भिन्न है, जलवायु में भी बहुत अन्तर है और इन सब के कारण रीति-रिवाजों (mores), मानवों की वृत्तियों में भी जमीन-आसमान का अन्तर आ जाता है। भारत में ही कुछ समाजों में मांसाहार बुरा नहीं माना जाता; जब कि कुछ लोग इसे छूना भी घृणित समझते हैं। कहीं विधवा-विवाह की परम्परा है और कहीं यह अनैतिक कार्य है। इसी प्रकार की स्थिति अन्य रीति-रिवाजों के बारे में भी है। ऐसी स्थिति में अपेक्षात्मक प्रणाली किसी सार्वभौम शाश्वत नैतिक नियम को स्वीकार नहीं कर पाती। यही इसका एकांगीपन है। ऐसा ही एकांगीपन अनपेक्षात्मक प्रणाली में है। वह शाश्वत सिद्धान्तों को स्वीकार करके व्यवहार पक्ष को उपेक्षित कर देती है। प्रत्यक्ष परिस्थितियों का उसमें कोई भी स्थान नहीं है। उधर वह लक्ष्य ही नहीं देती। जबकि नीतिशास्त्र मानव के आन्तरिक जगत से भी सम्बन्धित है और बाह्य जगत से भी। वह स्वहित के साथ लोकहित का भी विचार करता है। उसके सभी सिद्धान्त जितने व्यक्ति के स्वयं के लिए हितकारी हैं, उतने ही लोक के लिए भी। ____ अतः अनपेक्षात्मक और अपेक्षात्मक-दोनों ही प्रणालियाँ पृथक् पृथक् नीतिशास्त्र के अध्ययन में सक्षम नहीं है। समन्वयात्मक नैतिक प्रणाली वास्तव में नीतिशास्त्र के अध्ययन के लिए वैज्ञानिक प्रणाली, दार्शनिक प्रणाली, अनपेक्षात्मक और अपेक्षात्मक आदि कोई भी प्रणाली एकांगीरूप में सक्षम नहीं है। इसका कारण यह है कि नीतिशास्त्र न केवल विज्ञान है, न केवल
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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