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________________ 130 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन दार्शनिक प्रणाली दार्शनिक प्रणाली को तात्विक प्रणाली ( Metaphysical Method) भी कहा जाता है। इसके प्लेटो, अरस्तू, हेगेल, ग्रीन आदि प्रत्ययवादी (Idealist) दार्शनिक नीतिशास्त्री हैं । इनके अनुसार नीतिशास्त्र तत्व दर्शन ( Metaphysics) पर आधारित है। समस्त नैतिक आदर्श सद्वस्तु (Reality) से निगमन प्रणाली ( deductive) द्वारा निकाले जाते हैं। वह सद्वस्तु की प्राप्ति मानव का परम लक्ष्य है और वह सम्पूर्ण मूल्यों (values) का भण्डार है । वही शाश्वत और वास्तविक है । इस प्रणाली की सबसे बड़ी कमी यह है कि यह आदर्श जगत में ही विचरण करती है, व्यावहारिक जगत, इसकी घटनाओं, देश-काल की स्थितियों, मानव के आवेग, उसकी प्रतिक्रियाओं, रुचियों आदि की उपेक्षा कर देती है । वैज्ञानिक प्रणालियां (1) भौतिक और जैविकीय प्रणाली- इस प्रणाली के समर्थक हर्बर्ट स्पेन्सर आदि नीतिशास्त्री हैं । इन्होंने मानव के नैतिक आदर्शों को पशुजगत से निकालने ( derive) की चेष्टा की है। इनकी धारणा है कि नैतिक नियम समाजशास्त्रीय नियमों पर, समाजशास्त्रीय नियम मनोवैज्ञानिक नियमों पर, मनोवैज्ञानिक नियम जैविकीय नियमों पर और जैविकीय नियम भौतिक नियमों पर आधारित होते हैं । इसका कारण यह है कि यह सब विकास क्रम की अवस्थाएँ हैं । यह प्रणाली चार्ल्स डारविन के विकासवाद से प्रभावित है। (2) ऐतिहासिक और जननिक प्रणाली - यह ऐतिहासिक विकास क्रम तथा उत्पत्ति से नैतिक नियमों के विवेचन का प्रयास करती है, इसके समर्थक हर्बर्ट स्पेन्सर; लेस्ली स्टीफेन, अलैक्जेन्डर आदि विकासवादी नीतिशास्त्री हैं। कार्ल मार्क्स ने भी मानव इतिहास की अर्थशास्त्रीय विवेचना करके नैतिक नियमों को भूत और वर्तमान काल की आर्थिक रचनाओं के परिणाम रूप में बताया है। (3) मनोवैज्ञानिक और विश्लेषणात्मक प्रणाली - उपयोगितावादी दार्शनिक, ह्यूम, बेन्थम, मिल आदि ने नैतिक नियमों को मनोविज्ञान के आधार पर मानकर इस (मनोवैज्ञानिक) प्रणाली का समर्थन किया है। उनकी मान्यता
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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