________________
126 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
स्वर्ग और नरक का प्रत्यय भी पुनर्जन्म के प्रत्यय के साथ ही संलग्न है। सभी धर्मों ने स्वर्ग-नरक के वर्णन से मानव को नैतिक जीवन जीने की ओर प्रेरित किया है।
यद्यपि यूनान में Epicureanism और भारत में चार्वाक भोगवादी विचारधाराएँ अस्तित्व में आईं। जिन्होंने पुनर्जन्म, नरक, स्वर्ग, आत्मा की अमरता, कर्म सिद्धान्त का खण्डन किया, किन्तु इस विचारधाराओं का जन-मानस पर कोई प्रभाव नहीं हुआ। ये विचारधाराएँ समय के महासागर (ocean of the time) में बुलबुले (bubble) के समान विलीन हो गईं।
पुनर्जन्म का प्रत्यय भारतीय नीतिशास्त्र का तो प्रमुख प्रत्यय है ही मार्टिन्यू, काण्ट तथा सेथ आदि भी पुनर्जन्म को स्वीकार करते हैं और उसे नैतिक प्रत्ययों में स्थान देते हैं।
संस्कार प्रत्यय
संस्कार हिन्दू धर्म का विशेष शब्द है। मनु ने इन्हें शरीर की शुद्धि बताया है। प्रमुख संस्कार 16 माने गये हैं। किन्तु नीतिशास्त्र की दृष्टि से, इनमें से उपनयन और विवाह उल्लेखनीय हैं। ____ उपनयन का अभिप्राय है-विद्या प्रारम्भ करना। विद्या ही विनय की जननी है। विनय और अनुशासन के रूप में बालक सर्वप्रथम नैतिकता का पाठ पढ़ता है। गुरु से प्राप्त ज्ञान तथा शिक्षा-कलाओं से स्वयं को भावी जीवन के लिए तैयार करते हुए जीवन में नैतिकता का महत्व समझता है।
विद्या समाप्त करने के बाद जब गुरु आशीर्वाद के रूप में 'सत्यं वद धर्म चर' का उपदेश देते हैं तो वह नैतिकता का ही पाठ है कि जीवन में सदा नीति का व्यवहार करना चाहिए।
विवाह को श्री बेलवलकर (Velvalker) ने व्यक्ति का समाजीकरण (socialization) कहा है। विवाह के बाद गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने के साथ ही मानव पर समाज, जाति, राष्ट्र आदि सभी के उत्तरदायित्व आ जाते हैं।
माता-पिता एवं वृद्धजनों की सेवा, आश्रितों का उचित पालन-पोषण तथा शिक्षा-दीक्षा एवं अन्य सभी प्रकार के कर्तव्यों को पूरा करते हुए वह नीतिपूर्वक जीवन यापन करता है।
गृहस्थाश्रम के उत्तरदायित्वों को पूरा करने के लिए धन आवश्यक है अतः वह धन का उपार्जन तो करता है, किन्तु करता है नीतिपूर्ण उपायों से ही।