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नैतिक प्रत्यय / 125
भारतीय दर्शनों, शास्त्रों और पुराणों में अनेक जन्मों का वर्णन हुआ है। बौद्धजातक, जिनमें बोधिसत्वों के रूप में, बुद्ध के पुनर्जन्मों की घटनाएँ संकलित हैं, स्पष्ट ही पुर्वजन्म और पुनर्जन्म को प्रमाणित करती हैं । कौषीतकि उपनिषद के अनुसार आत्मा अपने कर्म और ज्ञान के अनुरूप कीड़े, मछली, पक्षी, व्याघ्र, सर्प आदि के रूप में जन्म धारण करती है ।
भारत में विख्यात 84 लाख जीव-योनियों में विश्वास आत्मा की अमरता के साथ पूर्वजन्म और पुनर्जन्म का विश्वस्त प्रमाण है ।
जैन दर्शन स्वयं भगवान ऋषभदेव और भगवान महावीर के कई पूर्वजन्मों का वर्णन पुनर्जन्म के प्रत्यय को कर्माधारित मानते हुए स्पष्ट प्रमाणित करता है ।
बुद्ध के पूर्वजन्म की घटनाओं को आधार बनाकर ही सम्पूर्ण जातक साहित्य की सर्जना की गई है। जातक कथाओं में ही पूर्वजन्म के शुभाशुभ कर्मों को सुखःदुःख का कारण बताया गया है ।
ईसाई और इस्लाम धर्म यद्यपि यह स्वीकार करते हैं कि मानव अपने नैतिक शुभाशुभ कर्मों का फल पूरा इस जीवन में नहीं भोग पाता, फिर भी ये पुनर्जन्म को स्वीकार नहीं करते। इनकी धारणा है कि शुभाशुभ कर्मों के अनुसार आत्मा ( रूह - soul) को स्वर्ग नरक ( जन्नत या दोजख Heaven or Hell) को ईश्वरीय ( खुदा या God के) आदेश से भेज दिया जाता है ।
किन्तु आधुनिक युग में हुई अनेक पुनर्जन्म की घटनाओं ने पुनर्जन्म के सिद्धान्त को स्थापित कर दिया है और कट्टर निरीश्वरवादी नीत्शे की अवधारणा को एक प्रकार से निरस्त कर दिया है।
वस्तुस्थिति यह है कि कर्मसिद्धान्त अनिवार्य रूप से पुनर्जन्म के प्रत्यय से संलग्न है, पूर्ण विकसित पुनर्जन्म के सिद्धान्त के अभाव में कर्मसिद्धान्त अर्थशून्य है।
नीतिशास्त्र के क्षेत्र में जितना प्रभावी कर्म प्रत्यय है, उतना ही प्रभावशाली पुनर्जन्म का प्रत्यय है
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पुनर्जन्म अथवा आगामी जन्म में सुख प्राप्ति के लिए मानव नैतिक कर्तव्यों ओर प्रेरित होता है । वह अपना व्यवहार इस प्रकार का रखने का प्रयास करता है, जिससे उसे आगामी जन्म में दुर्गति में जाकर दुःख न भोगने पड़ें।
1. Mohanlal Mehta : Jaina Psychology, p. 173