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________________ 124 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन (1) मनुष्य के प्रत्येक कर्म का फल होता है। यह फल भौतिक, मानसिक अथवा नैतिक किसी भी प्रकार का होता है। यह मनुष्य के स्वभाव, चरित्र और प्रवृत्तियों पर प्रभाव डालता है। मनुष्य को पिछले जन्मों के कर्मों का फल भी वासना और संस्कार के रूप में प्राप्त होता है। (2) कर्म के लिए भावी जीवन (अगला जन्म तथा साथ ही पिछला जन्म भी) होना चाहिए क्योंकि मनुष्य को अपने सभी कर्मों का फल इस जीवन में नहीं मिल पाता। (3) धनी-निर्धन, सुखी-दुखी, बुद्धिमान-मूर्ख आदि संसार में पाई जाने वाली विशेषताएँ पूर्वजन्मों के कर्मों का ही परिणाम हैं। यह सामान्य सी बात है कि कोई भी मनुष्य निर्धन, दुखी और मूर्ख नहीं रहना चाहता, सभी सुखी, धनवान बुद्धिमान बनना चाहते हैं और यह भी मानव जानता है कि अनैतिक कार्यो का फल दुःखप्रद होता है, जबकि नैतिक कार्यों का सुखप्रद । इसी अपेक्षा से पाप कर्म-हिंसा, झूठ, चोरी आदि अनैतिक प्रत्यय और सत्य, प्रामाणिकता, पुण्य, सहनशीलता, सहयोग, सेवा, परोपकार आदि नैतिक प्रत्यय हैं। मानव इन नैतिक प्रत्ययों का पालन तथा अनुगमन कर्म सिद्धान्त में विश्वास रखने के कारण लगनशीलता तथा गहराई और सावधानी से करता है। इसीलिए भारतीय नीतिशास्त्र में कर्म (सिद्धान्त) को अति प्रभावशाली नैतिक प्रत्यय माना गया है। पुनर्जन्म : नैतिक प्रत्यय पुनर्जन्म की अवधारणा (साथ ही पूर्वजन्म की भी) कर्म सिद्धान्त से ही संलग्न है। इस (पुनर्जन्म) का आधार भगवान महावीर का यह कथन है कि सुचीर्ण और दुश्चीर्ण (शुभ-अशुभ) कर्मों का फल इस जीवन में भी मिलता है और अगले जन्म में भी। इसी प्रकार पूर्व जीवन में किये हुए शुभ कर्म उस पूर्वजीवन में भी फल देते हैं और इस वर्तमान जीवन में भी।' 1. इहलोगे दुच्चिण्णा कम्मा इहलोगे दुहफलविवागसंजुत्ता भवन्ति, इहलोगे दुच्चिणा कम्मा परलोगे दुहफलविवागसंजुत्ता भवन्ति, परलोगे दुच्चिण्णा कम्मा इहलोगे दुहफलविवागसंजुत्ता भवन्ति, परलोगे दुच्चिणा कम्मा परलोगे दुहफलविवागसंजुत्ता भवन्ति। (इसी प्रकार सुचीर्ण (शुभ) कर्मों का फल भी वर्णित है।) -ठाणांग, ठाणा 4, सू. 282
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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