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________________ नैतिक प्रत्यय / 123 लिए कार्य-कारण सिद्धान्त की। विज्ञान किसी भी कार्य के लिए कारण आवश्यक मानता है, इसी तरह मानव के सुख-दुःख के कारण उसके स्वयं के किये हुए कर्म हैं। कर्म सिद्धान्त का नीतिशास्त्र में महत्व बताते हुए डा. आर. एस. नवलक्खा कहते हैं- “यदि कार्य-कारण सिद्धान्त जगत के तथ्यों की व्याख्या को प्रामाणिक रूप में प्रस्तुत करता है तो फिर उसका नैतिकता के क्षेत्र में प्रयोग करना न्यायिक क्यों नहीं होगा। संसार के सभी मनुष्यों, चाहे वे मोक्षवादी-आस्तिक हैं अथवा भोगवादी-नास्तिक, उनकी यही धारणा है कि मानव के कर्म उसके साथ रहते हैं तथा उसे उनका फल भोगना पड़ता है। ___इस धारणा का आधार भगवान महावीर के यह कथन हैं-'प्राणियों के कर्म ही सत्य हैं तथा 'कर्म सदा कर्ता के साथ चलते हैं। एवं 'किये हुए कर्मों का फल भोगे बिना छुटकारा नहीं होता। इसी प्रकार शुभ कर्म शुभ (सुखप्रद) फल देते हैं और अशुभ कर्म दुःखप्रद फल देते हैं, जीव को दुःखदायी होते हैं।' यह 'शुभ' और 'अशुभ' नीतिशास्त्र के प्रमुख प्रेरक तत्व और आधारभूत सिद्धान्त हैं। नीतिशास्त्र अशुभ और शुभ की विवेचना करके मानव को शुभ का मार्ग बताता है तथा उस शुभ को प्राप्त करने की प्रबल प्रेरणा देता है। यही नीतिशास्त्र का हार्द है। कर्म-सिद्धान्त इसी रूप में नैतिक प्रत्यय है। शिवस्वामी अय्यर ने कर्म सिद्धान्त में तीन प्रधान तत्व बताये हैं1. शंकर्स ब्रह्मवाद, पृ. 248 2. कम्म सच्चा हु पाणिणा। -उत्तराध्ययनसूत्र, 7/20 3. कत्तारमेव अणुजाइ कम्म। -उत्तराध्ययनसूत्र, 13/13 4. कडाण कम्माण न मोक्ख अत्थि। -उत्तराध्ययन सूत्र, 4/3 और भी देखिए-'यह विश्वास कि कोई भी अच्छा या बुरा कर्म (बिना फल दिये) समाप्त नहीं होता, नैतिक जगत का ठीक वैसा ही विश्वास है जैसा कि भौतिक जगत में ऊर्जा की अविनाशिता के नियम का विश्वास है। - (मैक्समूलर-थ्री लैक्चर्स ऑन वेदान्त फिलासफी, पृ. 165) 5. सुचिण्णा कम्मां सुचिण्णा फला हवन्ति। दुच्चिण्णा कम्मा दुच्चिण्णा फला हवन्ति ।। 6. उद्धृत-डा. रामनाथ शर्मा : नीतिशास्त्र की रूपरेखा, पृ. 92
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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