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110 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
यही नीतिशास्त्र में संकल्प की स्वतन्त्रता का प्रत्यय है ।
नैतिक शब्द 'संकल्प' के अधिकतम निकट जैन दर्शन का शब्द है- दृष्टि (point of vision)। दृष्टि सम्यक् भी होती है और मिथ्या भी । सम्यक् दृष्टि नैतिक है और मिथ्या दृष्टि अनैतिक । सम्यकदृष्टिपूर्वक किये गये विचार एवं कार्य नैतिक होते हैं; जबकि मिथ्या दृष्टि से प्रभावित कार्य अनैतिक मिथ्यादृष्टिपूर्वक की गई सभी शुभाशुभ क्रियाओं और विचारों को 'बाल' शब्द से विशेषित करने में जैन तत्त्वद्रष्टाओं का यही भाव परिलक्षित होता है ।
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जेम्स सेथ के शब्दों में भी यही भाव दृष्टिगोचर होता है, जबकि वह कहता है - संकल्प का कार्य सृष्टि करना ही नहीं, अपितु नियन्त्रण और निर्देशन करना भी है । '
जेम्स सेथ का संकल्प विषयक यह कथन निश्चित ही जैन दर्शन द्वारा निर्धारित 'दृष्टि' को प्रतिबिम्बित कर रहा है
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इस प्रकार स्पष्ट है कि संकल्प की स्वतन्त्रता नीतिशास्त्र का आधारभूत प्रत्यय है । इसके अभाव में नीतिशास्त्र की सम्भावना ही नहीं हो सकती। साथ ही इससे आत्म स्वातन्त्र्य की अभिव्यक्ति होती है, जो भारतीय आचार एवं नीति का हार्द है । आचार और नीति के सभी सिद्धान्त आत्म-स्वातन्त्र्य के केन्द्रबिन्दु के ही चारों ओर घूमते हैं । इसीलिए संकल्प की स्वतन्त्रता को नीतिशास्त्र में आत्मा द्वारा नियन्त्रित स्वीकार किया गया है। आत्मा द्वारा अनियन्त्रित संकल्प की स्वतन्त्रता को नीतिशास्त्र में कोई स्थान ही नहीं दिया गया है I
अभी तक हमने नीतिशास्त्र के उन प्रत्ययों की विवेचना की जो सार्वभौम कहे जा सकते हैं, इनको पश्चिमी नीतिशास्त्रियों ने भी स्वीकार किया है । किन्तु अब हम ऐसे प्रत्ययों की विवेचना करेंगे जो भारतीय संस्कृति-सभ्यता-समाज में पाये जाते हैं और भारतीय समाज पर जिनका प्रभाव है।
वर्णाश्रम व्यवस्था
वर्ण शब्द 'वृ' धातु से व्युत्पन्न हुआ, जिसका अर्थ है चुनना । इस दृष्टि से वर्ण का अर्थ है - व्यक्ति जिसे अपने स्वभाव और कर्म के अनुसार चुनता है । वैसे वर्ण का अर्थ रंग भी होता है। ऋग्वेद ( 1/73/7, 2/3/5, 9/97/15) आदि स्थलों पर वर्ण शब्द का रंग के लिए प्रयोग हुआ है। इससे
1. James Seth : A Study of Ethical Principles, p. 44.