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नैतिक प्रत्यय / 109
अर्जुनमाली को हत्यारा बना दिया, 1155 स्त्री-पुरुषों की हत्या करवाई और सम्पूर्ण राजगृह नगरवासियों को विपत्ति में डाल दिया।
इसलिए नीतिशास्त्र में आत्मनियमितता (self-control) से नियंत्रित संकल्प की स्वतन्त्रता एक प्रत्यय के रूप में स्वीकार की गई है और साथ ही नैतिक उत्तरदायित्व (moral responsibility) का प्रत्यय भी इसके साथ जोड़ दिया गया है।
मनुष्य सदा ही पूर्णतः स्वतन्त्र नहीं है, वह अपनी इच्छा के अनुसार ही कार्य नहीं कर सकता। अपितु सत्य यह है कि मानव को अपने जीवन व्यवहार में बाह्य परिस्थितियों का भी विचार रखना पड़ता है।
इन्हीं बातों पर विचार करके वेल्टन ने उत्तरदायित्व के लिए अपना आशय स्पष्ट करते हुए कहा है-हम ठीक उसी अनुपात में अपने कार्यों के लिए उत्तरदायी हैं, जैसे वे हमारे व्यक्तित्व को प्रगट करते हैं। जहाँ तक वे, जो कुछ हम हैं, इसे प्रगट नहीं करते, हम उनके लिए उत्तरदायी नहीं हैं।"
वेल्टन का यह कथन नैतिक उत्तरदायित्व के लिए सटीक है।
जैन दृष्टि-संकल्प की स्वतन्त्रता एवं उसके आचरण के लिए भगवान महावीर ने कहा है-जं सेयं तं समायरे-जो श्रेष्ठ हो उसका आचरण करे। धार्मिक व्रत तथा नैतिक संकल्प लेने से पूर्व व्यक्ति अपनी इच्छा प्रकट करता है-“इच्छामि णं भंते-भंते! मैं यह व्रत लेना चाहता हूं। जिसके उत्तर में गुरु कहते हैं-जहां सुहं देवाणुप्पिया-देवानुप्रिय! आप जैसा उचित समझो वैसा करो।" इसमें संकल्प की पूर्ण स्वतन्त्रता व्यक्त की गई है।
मैकेंजी का मत है कि प्रत्येक नैतिक कार्य के लिए स्वतन्त्रता और आत्म-नियन्त्रण साथ-साथ रहते हैं। अन्य विद्वानों ने भी इस मत को स्वीकार किया है।
काण्ट का कथन है कि नैतिक कार्य करने में व्यक्ति इच्छाओं के संघर्ष में स्वतन्त्र चुनाव करता है। इच्छाएँ-काम, क्रोध, लोभ आदि की होती हैं। इन पर विजय के लिए आत्म-नियन्त्रण ही एकमात्र प्रभावी साधन है। आत्म-नियन्त्रण से प्रभावित होकर ही व्यक्ति स्वतन्त्रतापूर्वक संकल्प करता है, 1. "We are responsible for our acts in exact proportion and they express our personalities. In so far as they do not express what we are, we are not responsible to them."
---Welton : Groundwork of Ethics, p.44 2 दशवैकालिक, 4,11