________________
नैतिक प्रत्यय / 105
नैतिक कर्तव्य ___ कर्तव्य एक बहुत ही विशाल शब्द है। इसीलिए इसका विभिन्न रूपों में प्रयोग किया जाता है, यथा-सामाजिक कर्तव्य, राजनीतिक कर्तव्य, जाति-देश-समाज-राष्ट्र और अन्तर्राष्ट्रीय कर्तव्य । यहाँ तक कि कर्तव्य शब्द धर्म शब्द के पर्यायवाची रूप में भी प्रयुक्त होता है। जैसे-पति की सेवा करना पत्नी का धर्म है। यहाँ धर्म से कर्तव्य ही सूचित होता है। पति की सेवा पत्नी का व्यवहाराश्रित आचरण है।
कर्तव्य का सम्बन्ध मनुष्य से ही है, पशु-जगत में यह शब्द कोई महत्व नहीं रखता। अतः कर्तव्य एक चेतन कर्म है, जिसका दायित्व मनुष्य पर ही है और वही कर्तव्य-अकर्तव्य का विवेक कर सकता है। __ नैतिक कर्तव्य (moral duty) वह है जो व्यक्ति शुभ अथवा परमशुभ के विचार को हृदय में रखकर करता है। शुभ में क्योंकि व्यक्ति और समाज दोनों का हित निहित होता है, इसी अपेक्षा से नैतिक कर्तव्य के भी दो पहलू हैं-व्यक्ति के अपने हित से सम्बन्धित कर्तव्य और दूसरा समाज के हित के लिए कर्तव्य।
कछ विद्वानों ने नैतिक कर्तव्य का एक भेद नैतिक बाध्यता (moral obligation) माना है। नैतिक बाध्यता से अभिप्राय उन नैतिक कर्तव्यों से है जो व्यक्ति को बाध्य होकर करने पड़ते हैं।
नैतिक बाध्यता सामाजिक, राजनीतिक, कानूनी कई प्रकार की हो सकती है, जैसे-चोरी न करना, हत्या न करना, शांति बनाये रखना आदि ऐसे कर्तव्य हैं, जिनको न करने पर व्यक्ति को दण्डित किया जा सकता है। समाज भी उसे तिरस्कृत कर सकता है।
किन्तु विशुद्ध नैतिक कर्तव्य वह हैं, जिन्हें मनुष्य स्वेच्छा से अपने ऊपर आरोपित करता है और उनका पालन करता है। ऐसे कर्तव्य व्यक्ति के स्वयं के व्यक्तित्व को उन्नत बनाते हैं। व्यक्ति इनका पालन अपनी अन्तरात्मा के आदेश से करता है। ऐसे कर्तव्य हैं-सदाचारी जीवन व्यतीत करना, दैनिक जीवन-व्यवहार शुद्ध रखना, नियमबद्ध जीवन बिताना, स्वस्थ, स्वच्छ, और सात्विकतापूर्ण जीवन व्यतीत करना।
इनकी यह विशेषता है कि ऐसे नैतिक कर्तव्यों का पालन न करने पर व्यक्ति को किसी प्रकार का दण्ड नहीं मिलता। स्वयं अपनी इच्छा से पालन किये जाने के कारण यह विशुद्ध नैतिक कर्तव्य कहे जाते हैं।