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________________ 104 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन परमशुभ के उदाहरण, ईश्वरभक्ति, सभी प्राणियों की मंगलकामना और इससे भी बढ़कर प्राणिमात्र को अपनी आत्मा के समान समझना है । जैनदृष्टि - भगवान महावीर ने जो कहा है- अत्तसमे मन्नेज्ज छप्पि काए' - अपनी आत्मा के समान ही सभी प्राणियों को समझो तथा मित्ती मे सव्वभूसु - सब प्राणियों के साथ मेरा मित्रभाव है - यह परमशुभ का दिशा निर्देशक सूत्र है । इसके अतिरिक्त प्राणिमात्र की कल्याण कामना, माध्यस्थ भावना, ' नैतिक शुभ है, जिसमें सभी व्यक्ति सुखी हों, “सुखी रहें सग जीव जगत के” ऐसी भावना करता है 1 नैतिक उचित नैतिक उचित (moral right) का अभिप्राय है-ठीक अथवा नियमानुसार । इसके विपरीत नैतिक अनुचित (moral wrong ) होता है। अनुचित का अभिप्राय है, शुभ और अच्छे को तोड़ना, मरोड़ना, उसका अभिप्राय अपने स्वार्थ के अनुकूल लगाना । यहां नियमानुसार का अभिप्राय नैतिक नियमों (moral codes) के अनुसार कार्य करना अथवा उसी के अनुरूप अपना व्यवहार ढालना है। नैतिक नियम है कि किसी का शोषण न किया जाय । अतः श्रम करने वाले के कल्याण के कार्य उचित हैं, जबकि उनका शोषण अनुचित । इस विषय में राजनीतिक और न्यायिक नियम-कानून (political and judicial laws) नैतिक नियमों से भिन्न हो सकते हैं। बहुत से ऐसे श्रमिक कल्याण के कार्य हैं, जिनके बारे में स्पष्ट कानून नहीं हैं । यथा - बेरोजगारी का भत्ता देना, किन्तु श्रमिक की कुछ समय के लिए छटनी कर देना और उस समय का बेरोजगारी भत्ता न देना, नैतिक नियम के अनुसार अनुचित है । इस दृष्टि से नैतिक नियम कानूनी नियमों की अपेक्षा अधिक विस्तृत हैं, इनका दायरा विशाल है । 1. दशवैकालिक सूत्र, 10 / 5 2. अमितगतिद्वात्रिंशिका, श्लोक 1
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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