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________________ नैतिक प्रत्यय / 103 ज्ञान और आचरण का समन्वय भारतीय संस्कृति का शाश्वत उद्घोष रहा है । यही बात नीतिशास्त्र के ज्ञान एवं आचरण के विषय में भी सत्य है । आचरणहीन ज्ञान यहाँ दम्भ का पर्याय माना गया है। इस प्रकार नैतिक प्रत्ययों के सम्बन्ध में पाश्चात्य और भारतीय दृष्टिकोण का अन्तर स्पष्ट हो जाता है। अतः यहाँ नैतिक प्रत्ययों को पाश्चात्य और भारतीय इन दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है । पाश्चात्य नैतिक प्रत्यय हैं -- (1) नैतिक शुभ ( 2 ) उचित और अनुचित, (3) नैतिक कर्तव्य, (4) नैतिक गुण और अवगुण, (5) पुण्य और पाप, ( 6 ) स्वतन्त्रता और ( 7 ) नियतिवाद । भारतीय नैतिक प्रत्यय हैं (1) वर्ण व्यवस्था, (2) आश्रम व्यवस्था, (3) पुरुषार्थ, (4) ऋण विचार, (5) धर्म का पालन, ( 6 ) कर्मफल का सिद्धान्त, ( 7 ) पूर्व जन्म के संस्कार आदि । यह वर्गीकरण स्थूल दृष्टि से है । पाश्चात्य प्रत्यय भारतीय प्रत्ययों की सीमा से बाहर नहीं हैं । भारतीय विचारधारा में इन सभी प्रत्ययों पर विचार किया जाता है। साथ ही उपरोक्त परिगणित प्रत्यय ही अन्तिम नहीं हैं, इसके अतिरिक्त भी नैतिक प्रत्यय हैं और हो सकते हैं, जो मानव के नैतिक जीवन को प्रभावित करते हैं । नैतिक शुभ नैतिक शुभ (moral good) का सम्बन्ध व्यक्ति के संकल्प से होता है । संकल्प ही शुभ होता है और अशुभ भी होता है । कष्टपीड़ित व्यक्तियों की व्यथा को दूर करने का संकल्प शुभ है और उनकी पीड़ा बढ़ाने का विचार अशुभ है। संक्षेप में, मानवधर्म का पालन करना, हृदय में उदारता रखना, नैतिक शुभ है। नीतिशास्त्र परमशुभ ( ultimate good) के प्रत्यय पर भी विचार करता है । परमशुभ का संकल्प ऐसी स्थिति उत्पन्न करता है, जिसमें शुभत्व का चरमबिन्दु तो उपलब्ध होता ही है, साथ ही व्यक्ति में आत्मसंतुष्टि (self contentment) की भावना भी हिलोरें लेती हैं।
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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