SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 130
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 102 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन वही बुराई (evil) है। इसी प्रकार न्याय-अन्याय के विषय में भी इन विद्वानों के विचार की प्रणाली है। ___अच्छाई-बुराई आदि सभी नैतिक प्रत्ययों को स्वीकार करने का इनका आधार इन्द्रिय-प्रत्यय ही है, आत्मा तक इनकी पहुंच नहीं है। इस विचारधारा के प्रतिनिधि विद्वान इंग्लैण्ड के श्री ए.जी. एयर हैं। ये तो नैतिक प्रत्ययों (concepts) को प्रत्ययाभास (pseudo concepts) मानते हैं और कहते हैं कि इन प्रत्ययों का विश्लेषण नहीं किया जा सकता; अतः इन प्रत्ययों का नीतिशास्त्र में कोई महत्वपूर्ण स्थान नहीं है। ये तो मात्र भावनाएं अथवा संवेग हैं जो मनोविज्ञान अथवा समाजविज्ञान के विषय हैं। तथा नीतिशास्त्र मनोविज्ञान अथवा समाजविज्ञान की एक शाखा मात्र है। इस प्रकार ये विचारक नैतिक आचरण की तो बात ही क्या उसके स्वतन्त्र अस्तित्व को ही नकारते हैं। नीतिशास्त्र के क्षेत्र को इतना सीमित कर देते हैं कि वह अपना मूल्य ही खो बैठता है। किन्तु भारत में यह विचारधारा कभी भी स्वीकार-योग्य नहीं रही। यहाँ तो धर्म और नीति का अभिन्न सम्बन्ध रहा है। साथ ही नीतिशास्त्र का कार्य नैतिक प्रत्ययों के निर्धारण के साथ-साथ उनके आचरण पर भी बल देना रहा है। दूसरे शब्दों में, नीतिविज्ञानी और नैतिक आचरण करने वाले मनुष्य ही नैतिक कहे जाते रहे हैं। दुर्योधन के शब्दों में जानामि धर्म न च मे प्रवृत्तिः जानाम्यधर्म न च मे निवृत्तिः अनीति में परिगणित किये गये हैं। 1. We find that ethical philosophy consists simply in saying that ethical concepts are pseudo-concepts and therefore unanalysable. The further task of describing the different feelings that the different ethical terms are used to express and the different reactions that they customarily provoke is a task for the psychologist......It appears, then, that ethics, as a branch of knowledge is nothing more than a department of psychology or sociology. ए.जी. एयर-लैंग्वेज, ट्रुथ एण्ड लाजिक, पृ. 112 उद्धृत-संगमलाल पाण्डेय : नीतिशास्त्र का सर्वेक्षण, पृ. 10
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy