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नैतिक प्रत्यय / 101
विचार (normative ideas) हैं, जो व्यक्ति एवं समाज को व्यवहार के लिए धारण करने पड़ते हैं और इनके अनुरूप अपना पारस्परिक व्यवहार निश्चित करना पड़ता है।
स्पष्ट है कि सामाजिक रीति-रिवाजों के अनुसार प्रत्यय भी बन जाते हैं। उदाहरणार्थ, जीवन का सर्वोत्तम लक्ष्य क्या है ? इस प्रश्न का उत्तर आध्यात्मवादी के शब्दों में होगा-सभी प्रकार के दुखों से मुक्ति अथवा मोक्ष-अनन्त अव्याबाध सुख की उपलब्धि। जबकि भौतिकवादी शारीरिक सुखों के निराबाध भोग को ही जीवन का सर्वोत्तम या चरम लक्ष्य स्वीकार करेगा। इस प्रकार के उत्तर अन्य प्रश्नों के भी प्राप्त होंगे। यह दृष्टिकोण का अन्तर है, जो देश-काल, तथा सभ्यता और संस्कृति की भिन्नता को स्पष्ट प्रकट करता है।
नैतिक प्रत्ययों का विश्लेषण ___अब तक विवेचन से यह स्पष्ट है कि नीतिशास्त्र का विषय सिर्फ नैतिक नियमों की बौद्धिक व्याख्या करना मात्र ही नहीं, अपितु उन नियमों के अनुसार जीवन-यापन करना, जीवन एवं व्यवहार की शुद्धि और सदाचार का परिपालन भी नीतिशास्त्र का विषय है।
किन्तु कुछ आधुनिक नीतिविज्ञानी कर्त्तव्य-अकर्त्तव्य, श्रेय-प्रेय, उचित-अनुचित आदि नैतिक प्रत्ययों का बौद्धिक विश्लेषण ही नीतिशास्त्र का विषय स्वीकार करते हैं। दूसरे शब्दों में, न्याय-अन्याय आदि नैतिक प्रत्ययों का अर्थ-निश्चय ही, ये विद्वान, नीतिशास्त्र का कार्य मानते हैं।
अर्थ-निश्चय का इनका आधार हृदयगत भाव (feeling or emotions) है। किसी कार्य को देखकर सुखद अनुभूति होने को ये विद्वान अच्छाई (good) मानते हैं और दुखद अनुभूति को बुराई (evil)।
उदाहरणार्थ, किसी अन्धे व्यक्ति की लाठी पकड़कर उसे सही राह पर लगा देने से व्यक्ति के हृदय में जो सुखद अनुभूति (sensation) होती है, वही अच्छाई है और एक्सीडैण्ट में किसी व्यक्ति के घायल हो जाने पर उसे कराहता देखकर भी उसके प्रति जो लापरवाही; उपेक्षा अथवा निर्दयता के भाव आते हैं, 1. Moral concept is a normative idea which is conceived by individual and society and behaviour is determined accordingly.
-चटर्जी, शर्मा, दास : नीतिशास्त्र, पृ. 78