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नीतिशास्त्र के विवेच्य विषय / 97
(असज्जन-बुरा) है। गुण स्वीकार करने में साधुता है और गुणों का त्याग करने में असाधुता।
यहाँ साधु और असाधु का अर्थ व्यापक रूप से ग्रहण करना चाहिए। साधु का अभिप्राय है-सज्जन पुरुष, ऐसा व्यक्ति जिसमें सामाजिक, धार्मिक आदि सभी दृष्टिकोणों से उचित एवं नैतिक मूल्य हों, जिसका चरित्र श्लाघनीय हो। असाधु इसके विपरीत नैतिक मूल्यों से रहित व्यक्ति होता है, जिसका जीवन और चरित्र उचित नहीं होता।
तो यह है कसौटी! मूल्यांकन!
चाणक्य ने भी एक श्लोक में मनुष्य की कसौटी बताई है। वह कहता है-"जिस प्रकार घर्षण, छेदन, ताड़न और तापन-चार प्रकार से सोने की परीक्षा की जाती है, उसी प्रकार श्रुत, शील, कुल, और कर्म द्वारा मानव की कसौटी अथवा परीक्षा की जाती है।"1
चाणक्य के इस कथन में मानवता के मानदण्ड (प्रतिमान) का, मूल्यांकन का स्पष्ट संकेत मिलता है।
इसी प्रकार मनुष्य अपनी बुद्धि द्वारा अपने द्वारा किये जाने वाले कार्यों का भी मूल्यांकन करता है, कर्तव्याकर्तव्य का सही निर्णय करता है। भोज प्रबन्ध में इस बात को इन शब्दों में प्रगट किया गया है
___ "ऐसा करने से क्या होगा और न करने से क्या होगा ? इस प्रकार मानसिक चिन्तन-मनन पूर्वक किसी कार्य को करने या न करने का निर्णय बुद्धिमान पुरुष करते हैं।"
इस कथन में भी मूल्यांकन का विचार स्पष्ट हो रहा है।
पश्चिमी जगत में जब अरस्तू ने मननशील जीवन (Contemplative life) को सर्वश्रेष्ठ जीवन कहा तो उसका अभिप्राय भी नैतिक मूल्यांकन अथवा मूल्यों की प्रतिष्ठा से था। ____ आधुनिक पाश्चात्य नीति वैज्ञानिकों ने मूल्यों पर कुछ अधिक गहराई से चिन्तन किया है। उन्होंने मूल्यों को दो प्रकार का माना है-(1) आन्तरिक या स्वतःप्रेरित (Intrinsic) और परतः प्रेरित (Extrinsic) ऐसा भी होता है कि
1. यथा चतुर्भि : कनक परीक्ष्यते, निघर्षणच्छेदन-ताप-ताडनैः।
तथा चतुर्भि : पुरुष परीक्ष्यते, श्रुतेन-शीलेन-कुलेन-कर्मणा।। 2. भोज प्रबन्ध, 23