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________________ 96 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन मूल्य का विवेचन 'अमुक व्यक्ति सज्जन (gentle) है', 'अमुक दुष्ट (rude) है', 'गांधी जी राजनीतिक संत (political saint) थे', 'राम मर्यादा पुरुषोत्तम थे', 'रावण पापी था'-इस प्रकार की धारणाएँ साधारणतया मनुष्य अन्य व्यक्तियों के प्रति बनाया करते हैं। इन धारणाओं को ही नीतिशास्त्र में मूल्यांकन कहा जाता है। ये धारणाएँ, अनर्गल और अनायास नहीं बनतीं, इनका ठोस आधार होता है। यह आधार व्यक्ति के जीवन-चरित्र में व्याप्त और प्रगट विशेषताओं से सम्बन्धित होता है। व्यक्ति का नैतिक चरित्र और व्यावहारिक चरित्र कैसा है, यह इन धारणाओं से स्पष्ट होता है। नैतिक चरित्र, नैतिक मूल्यों पर आधारित होता है। इसीलिए नीतिशास्त्र में मूल्यों (values) का भी विवेचन किया जाता है। न्याय, कर्तव्य और श्रेय के विवेचन को मनीषियों ने नीतिशास्त्र का दार्शनिक पहल कहा है और सदाचार को धार्मिक तथा सामाजिक; किन्त अरबन (Urban) जैसे कुछ आधुनिक नीतिशास्त्रियों ने नीतिशास्त्र को 'सुव्यवस्थित मूल्यांकन का विज्ञान'' माना है। इस दृष्टि से, नीतिशास्त्र में नैतिक निर्णय का स्वरूप, कर्ता, विषय, मानदण्ड आदि का विवेचन अथवा नैतिक निर्णयों का अध्ययन किया जाता है। किसी व्यक्ति को बुरा (wrong-rude) अथवा भला (gentle-right) कहने का आधार क्या है? इसकी कसौटी क्या है? इन सभी नैतिक मूल्यों का विवेचन नीतिशास्त्र करता है। भगवान महावीर से एक बार किसी जिज्ञासु ने जिज्ञासा की"भगवान्! साधु तथा असाधु किसे कहना चाहिए, इसकी कसौटी क्या है? भगवान् ने कहा गुणेहि साहू, अगुणेहिं असाहू गिण्हाहि साहू, गुणमुंचऽअसाहू अर्थात् जो गुणों को ग्रहण करता है, वह साधु (भला-सज्जन) है और जो गुणों (सत्य, शील, सदाचार आदि) का त्याग करता है वह असाधु 1. Ethics is then, in the last analysis, just the science of systematized valuing, or otherwise expressed, the valuing activity of man made systematic. -W.M.Urban : Fundamentals of Ethics,p.8 2. दशवैकालिक, 9/3/11
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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