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________________ 94 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन भगवान महावीर ने श्रावक का एक गुण बताया है-सेयट्ठी-श्रेयार्थी। यानी श्रावक अपने कल्याण की इच्छा करने वाला हो। नीतिशास्त्र इस श्रेय (ultimate good) की विवेचना करता है। जो श्रावक के लिए आवश्यक है, क्योंकि श्रावक नीतिवान गृहस्थ होता है। उसका सम्पूर्ण जीवन-व्यवहार ही नीति द्वारा संचालित होता है। अतः श्रेय नीतिशास्त्र का प्रमुख विवेच्य विषय है। सदाचार का विवेचन सदाचार, नीतिशास्त्र और धर्मशास्त्र दोनों का ही विवेच्य विषय है। नीतिशास्त्र और धर्मशास्त्र दोनों ही सदाचार की विवेचना करते हैं। किन्तु कौन-सा सदाचार नीतिशास्त्र का विषय है और कौन-सा धर्मशास्त्र का, इनके बीच में कोई स्पष्ट विभाजक रेखा खींचना सम्भव नहीं है क्योंकि सत्य बोलना, किसी का दिल न दुखाना, अपशब्द न कहना, सरल निष्कपट व्यवहार करना आदि बातें नीतिशास्त्र के अन्तर्गत भी आती हैं और धर्मशास्त्र भी इन सभी बातों को अपना विवेच्य विषय बताता है। फिर भी कुछ विद्वानों ने, सदाचार के सम्बन्ध में, धार्मिक और नैतिक सदाचार कहकर सीमारेखा खींचने का प्रयास किया है। ऐसे विद्वानों ने अंग्रेजी शब्द Ethics अथवा Ethos जिसका अभिप्राय रीति-रिवाज, आदत या परम्परागत देश-काल का-समाज का आचार होता है, वहीं तक नीति शास्त्र की सीमा स्वीकार की है। वे लोग नीतिशास्त्र के अन्तर्गत सदचार को समाजपरक मानते हैं। किन्तु भारत के सभी दार्शनिकों तथा धर्म के व्याख्याताओं ने मानव के समस्त चरित्र-आचार के विभिन्न पहलुओं पर विचार करके सदाचार पालन की विविध मर्यादाओं का विवेचन भी किया है। और यह समस्त विश्लेषण नीतिशास्त्र के अन्तर्गत ही समाहित है। 1. Muirhead : The Elements of Ethics, p.4. तुलना करिये'कृतसंगः सदाचारैः (सदाचारी पुरुषों की संगति करे), प्रसिद्ध च देशाचारं समाचरन् (प्रसिद्ध देशाचार का पालन करे) ,आदेश कालचर्यां त्यजन् (देश और काल के प्रतिकूल आचरण न करे).... आदि -हेमचन्द्राचार्य, योगशास्त्र 1/47-56 तथा -आचार्य हरिभद्रकृत योगबिन्दु (श्रावक के 35 बोल)
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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