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88 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
'खाना, पीना और ऐश करना' ही मानव जीवन का ध्येय हो जाता है, फिर वहाँ कैसी नैतिकता?
प्राचीन ‘रायपसेणियसुत्त'' में वर्णन आता है। सावत्थी का राजा प्रदेशी पहले कट्टर नास्तिक था, वह न तो पुनर्जन्म मानता था न पूर्वजन्म। अपनी इस मान्यता के कारण वह क्रूर और नृशंस बन गया। प्रजा का उत्पीड़न तथा भोग-विलास में ही उसका जीवन बीत रहा था। किन्तु केशी कुमार श्रमण के सत्संग से प्रदेशी राजा की विचारधारा बदल गई। वह परम आस्तिक व धार्मिक हो गया। उसने अपनी संपत्ति, शक्ति व सत्ता को प्रजा के कल्याण में नियोजित कर दिया। विचारधारा बदलते ही उसका आचरण भी बदल गया। प्रजापीड़क शासक प्रजावत्सल बन गया। इससे सिद्ध होता है कि धार्मिकता के साथ नैतिकता का चोली-दामन का सम्बन्ध हैं। प्राचीन विपाकसूत्र में भी इस प्रकार के चरित्र परिवर्तन के अनेक उदाहरण मिलते हैं।
इसी प्रकार आत्मा के स्वरूप सम्बन्धी मान्यताओं के आधार पर नैतिक प्रत्यय भी बदल जाते हैं, नये-नये वाद खड़े हो जाते हैं। नीतिशास्त्र का सुखवाद आत्मा को वासनात्मक मानता है, बुद्धिपरकतावाद बौद्धिक और पूर्णतावाद बुद्धि और वासना दोनों को आत्मा के स्वरूप में सम्मिलित कर लेता है।
भारतीय उपनिषदों में भी कहीं आत्मा को वासनात्मक कहा गया है तो कहीं और मनरूप, कहीं उसको बुद्धि रूप भी स्वीकार किया गया है। जैसी दर्शनिक मान्यता होती है वैसे ही नैतिक सिद्धान्तों का निर्माण होता है।
___ अतः स्पष्ट है कि दर्शनशास्त्र और नीतिशास्त्र दोनों एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं।
इसी प्रकार सौन्दर्यशास्त्र (Aesthetics) आदि अनेक विज्ञानों से नीतिशास्त्र का सम्बन्ध है। नैतिक प्रतिमानों (Norms) के अनुसार ही मनुष्य सौन्दर्य-असौन्दर्य की विवेचना/कल्पना करता है। वेशभूषा आदि को भी नैतिक धारणाएँ प्रभावित करती हैं।
_अतः यह स्पष्ट है कि नीतिशास्त्र एक नियामक विज्ञान है और इसका अन्य विज्ञानों से भी सम्बन्ध है। वस्तुतः नीतिशास्त्र की परिधि में मानव जीवन की अधिकांश क्रियाएँ तथा व्यवहार आ जाते हैं, अतः इसका अन्य विज्ञानों से सम्बन्धित होना स्वाभाविक ही है। 1. प्रदेशी राजा का कथानक जैन एवं बौद्ध दोनों परम्पराओं में प्रसिद्ध है। देखें-रायपसेणिय सुत्त (जैन)