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________________ 84 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन के विफल हो जाने पर तथा राज्य एवं प्रजा की रक्षा के लिए ही इन साधनों का प्रयोग किया जाय । विशद दृष्टिकोण से तो राजनीति, नीति की एक शाखा ही है । नीति के अनुसार शासन व्यवस्था संचालन करने वाले राज्य को धर्मराज्य कहा जाता है; इसका कुछ रूप आधुनिक युग को कल्याणकारी राज्य (welfare state) की कल्पना में भी निहित है । नीतिशास्त्र और समाजशास्त्र (Ethics and Sociology) समाजशास्त्र, सामाजिक सम्बन्धों, उनके प्रकारों आदि का अध्ययन करता है और नीतिशास्त्र समाज की सुव्यवस्था किस प्रकार रहे, उन आदर्शों और कर्तव्यों को निर्धारित करता है, अतः स्पष्ट है कि समाजशास्त्र और नीतिशास्त्र में परस्पर घनिष्ट सम्बन्ध है। एक-दूसरे पर निर्भर ही कहे जा सकते हैं । विचारकों ने इन्हें एक-दूसरे के पूरक कहा है। 1 फिर भी इन दोनों में कुछ अन्तर विचारकों ने बताये हैं (1) नीतिशास्त्र नियामक विज्ञान है; जबकि समाजशास्त्र विधायक विज्ञान है। (2) समाजशास्त्र की अपेक्षा नीतिशास्त्र कम व्यावहारिक है। (3) इन दोनों के क्षेत्र अलग-अलग हैं तथा विधियों में भी अन्तर है । इन दोनों में विशेष अन्तर यह है कि समाजशास्त्र मनुष्य के बाह्य क्रिया-कलापों, व्यवहारों का ही अध्ययन करता है; जबकि नीतिशास्त्र व्यक्ति के आन्तरिक पक्ष पर भी बल देता है । लेकिन भारतीय दृष्टिकोण से नीतिशास्त्र समाज की उन्नति और सुव्यवस्था के आदर्श निश्चित करने के कारण एक प्रकार से समाजशास्त्र या नियामक विज्ञान ही है। इसके बिना, जैसा कि पंचतंत्रकार ने कहा है, सुव्यवस्थित समाज की कल्पना ही नहीं की जा सकती । नीतिशास्त्र और मनोविज्ञान (Ethics and Psychology) नीतिशास्त्र और मनोविज्ञान में कुछ समानताएँ हैं तो कुछ अन्तर भी हैं। मनोविज्ञान यथार्थवादी विज्ञान है । वह सिर्फ संकल्पों की अवस्थाओं, मानव की मूल प्रकृत्ति आदि का वर्णन करता है; जबकि नीतिशास्त्र यह बताता है कि मानव को किस प्रकार के संकल्प करने चाहिए । यह आदर्शवादी विज्ञान है 1
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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