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________________ नीतिशास्त्र की प्रकृति और अन्य विज्ञान / 83 यद्यपि राजनीति और नीतिशास्त्र में कई अन्तर हैं, जैसे- राजनीति और नीति के लक्ष्यों की भिन्नता, विषय की भिन्नता आदि और सबसे बड़ा अन्तर है नियमों के स्वरूप का । राजनीति के नियम 'करना होगा' (must) के स्वरूप वाले हैं, जबकि नैतिक नियमों का स्वरूप है 'चाहिए' ( ought ) किन्तु इन दोनों शास्त्रों में समानताएँ अधिक हैं -- (1) दोनों ही शास्त्र मानवीय व्यवहारों से सम्बन्धित हैं । (2) दोनों ही नियामक विज्ञान हैं । (3) राजनीति, नैतिकता पर आधारित होनी चाहिए । प्लेटो, महात्मा गांधी आदि विचारक इस मान्यता के समर्थक हैं । इनका विचार है कि व्यक्ति से समूह, राष्ट्र, राज्य आदि यहाँ तक कि विश्व का निर्माण होता है अतः व्यक्तिगत नैतिकता का विशाल रूप ही राजनीति का आधार होना चाहिए । किन्तु कुछ विचारक इस आदर्शवादी राजनीति के समर्थक नहीं हैं। श्री तिलक, श्री अरविन्द आदि व्यवहारवादी राजनीति - विशारदों के विचार दूसरे प्रकार के हैं। श्री तिलक ने लोकधर्म ( लोकनीति), व्यक्ति धर्म (व्यक्तिगत नैतिकता) से बहुत से अपवाद माने हैं । इन दोनों मतों का समन्वय इस रूप में हो सकता है कि राष्ट्रों को अधिकाधिक नैतिक नियमों का पालन करना चाहिए किन्तु व्यवहार में राष्ट्र की नैतिकता और व्यक्ति की नैतिकता के मानदण्ड भिन्न-भिन्न हो सकते हैं । व्यक्ति के लिए, समाज के सन्दर्भ में काण्ट के विचार उचित हैं “स्वयं सदा ही नैतिक पूर्णता प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए, किन्तु ऐसे साधन जुटाने का प्रयास भी करना चाहिए जिससे अन्य लोग भी पूर्णता प्राप्त करने में सक्षम हो सकें; क्योंकि तुम्हारे लिए यह संभव नहीं है कि अन्य लोगों को पूर्ण बना सको ।" " फिर भी भारतीय दृष्टिकोण से विचार करने पर राजनीति, नीति के विरुद्ध नहीं हो सकती । यद्यपि भारतीय राजनीति में साम, दाम, दण्ड और भेद स्वीकार किये गये हैं और इनमें दाम (भेंट आदि - जिसे सही शब्दों में रिश्वत (bribery) कहा जा सकता है) और भेद (फूट) दोनों ही नैतिकता की सीमा में नहीं आते; किन्तु इनके प्रयोग के लिए स्पष्ट विधान है कि अन्य सभी उपायों 1. Try always to perfect thyself, and try to conduce to the happiness of others by bringing about favourable circumstances, as you cannot make other perfect. -Kant
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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