SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 110
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 82 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन मानव-जीवन के शुभाशुभ की कसौटी एक ही होती है। ऐसा कोई आदर्श नैतिक नहीं माना जा सकता, जिसके कारण जीवन ह्रासमान हो जाय। किन्तु स्पेन्सर की यह मान्यता उचित प्रतीत नहीं होती। जीवशास्त्र का महत्व इतना ही है कि वह मानव-प्रकृति की व्याख्या करे। इसके आगे नीतिशास्त्र का काम है कि वह मानव प्रकृति के अनुकूल आदर्श स्थापित करे। यह भी एक सर्वमान्य तथ्य है कि पशु-जगत के नियम मानव-जगत में नहीं चल सकते। पशुत्व से ऊपर उठना ही मानवता है-नैतिकता है। यदि विज्ञान की भाषा में ही कहा जाये तो मानव एक बौद्धिक पशु (Rational animal) है, अतः इसकी नैतिकता के नियमबुद्धि द्वारा ही निर्धारित किये जा सकते हैं, जैविकीय (Biological) आधार पर नहीं। अतः नीतिशास्त्र से जीवविज्ञान का सम्बन्ध इतना ही माना जाना चाहिए कि जीवविज्ञान जो भी मानव प्रकृति के सम्बन्ध में खोज करे, उसका नैतिक आदर्श निर्धारण करने के लिए नीतिशास्त्र में उचित उपयोग कर लिया जाय। नीतिशास्त्र और राजनीति (Ethics and Politics) राजनीति और नीतिशास्त्र में घनिष्ठ सम्बन्ध है। राजनीति को एक प्रकार से नीतिशास्त्र का अंग ही कहा जा सकता है। श्री हाबहाउस के ऐसे ही विचार हैं, वह लिखता है “राजनीति को नीतिशास्त्र के अधीन ही होना चाहिए। हमें चाहिए कि हम नीतिशास्त्र को अंशों में न देखकर समग्र रूप में देखें। प्लेटो, अरस्तू, स्पिनोजा, हेगेल आदि इसी विचारधारा के समर्थक हैं किन्तु हाब्स और बेन आदि विद्वानों का विचार है कि नीतिशास्त्र, राजनीतिशास्त्र की एक शाखा है। उनके अनुसार राजनैतिक नियम ही नैतिक नियम है। __ मैकियावेली तथा उसके अनुयायी-'प्रेम और युद्ध में सब कुछ उचित है। (Every thing is fair in love and war)' इस सिद्धान्त के समर्थक हैं। अतः वे राजनीति और नीतिशास्त्र में किसी प्रकार का सम्बन्ध मानने को प्रस्तुत नहीं है। उनका विचार है कि राज्य की आज्ञा ही नीति है। किन्तु इस मान्यता का समर्थन आधुनिक युग के विद्वान नहीं करते। 1. Politics must be subordinate to Ethics and we must endeavour to see Ethics not in fragments but as a whole. -Hobhouse, L.T.: The Elements of Social Justice, pp.13-14.
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy