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74 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
भारतीय दृष्टिकोण
पाश्चात्य विचारकों ने नीतिशास्त्र को नियामक विज्ञान के रूप में स्वीकार किया है और उस पर विविध दृष्टियों से चिन्तन किया है। उनकी यह विचारधारा तटस्थ दृष्टि से रही है। इसीलिए पश्चिमी चिन्तन जगत में इस पहलू से दो शब्द मिलते हैं, Moralist और Moral Philosopher.
Moral Philosopher CAT 37ef fifalaşılama Bit Moralist for अभिप्राय है नैतिकतावादी। नीति-दार्शनिक का काम केवल नीति-सम्बन्धी चिन्तन संसार के सामने रख देना है, यह आवश्यक नहीं कि वह इन सिद्धान्तों का स्वयं भी पालन करे।
लेकिन भारत में नीति का जीवन से/आचरण से घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है। यहाँ नैतिकतावादी और नैतिक विचारक जैसा भेद कभी मान्य नहीं रहा, कथनी और करनी का भेद यहां ढोंग माना गया। यहां नीतिसम्बन्धी विचार करने का अधिकारी उसे ही माना गया है जिसका जीवन स्वयं नीति से अनुप्राणित हो। नीतिमान ही नीति पर विचार करता था।
चूंकि भारत में नीतिशास्त्र जीवन का अभिन्न अंग रहा अतः यहाँ इसका क्रमबद्ध चिन्तन नहीं प्राप्त होता। तटस्थ दृष्टि से उस पर विचार किया ही नहीं गया। भारतीय नीतिशास्त्र के रूप में जो कुछ भी प्राप्त है, वह जीवन का सत्य है। आचारशास्त्र का ही एक अंश है।।
नीतिशास्त्र के रूप में कुछ सूक्तियाँ ही प्राप्त होती हैं, वह भी उपदेशात्मक रूप में जो जीवन-निर्माण की प्रेरणा देती हैं। किन्तु वे सूक्त्यात्मक वाक्य भी इतने प्रेरणाप्रद और जीवन-स्पर्शी हैं कि नीतिशास्त्र का सम्पूर्ण विषय उनमें सरलता से समाहित हो जाता है। भगवान महावीर के नीति वचन
भगवान महावीर के प्रवचनों में एक शब्द प्राप्त होता है-णेआउयं मग्गं। इसका अभिप्राय है-दुःख क्षय करने का मार्ग, अथवा पार ले जाने वाला मार्ग। दूसरे शब्दों में सफलता का व न्याय युक्त मार्ग।
1. (क) णयणसीलो णेआउयो -सूत्रकृतांगचूर्णि, पृ. 445
(ख) नयनशीलो नेयाइयो मोक्षं नयतीत्यर्थः -सूत्रकृतांगचूर्णि, पृ. 457 (ग) न्यायोपपत्रः इत्यर्थः -उत्तरा. बृहदवृत्ति पत्र, 185