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नीतिशास्त्र की परिभाषा / 75
सफलता का मार्ग निश्चित रूप से न्याय - नीति का मार्ग है, अन्याय - अनीति के मार्ग से तो सफलता प्राप्त हो ही नहीं सकती । आध्यात्मिक और जागतिक दोनों ही क्षेत्रों में मनुष्य विफल हो जाता है ।
इस न्याय (कल्याण अथवा शुभ good) मार्ग को सुनकर / पढ़कर / जानकर ही मानव कल्याण अथवा शुभ को जानता / पहचानता है । '
लेकिन वह शुभ का मार्ग इतना कठिन है कि बहुत से लोग इसे जान-सुनकर - समझकर भी इससे भ्रष्ट हो जाते हैं ।
यही मार्ग (न्याय-नीति का मार्ग) ध्रुव ( निश्चित व शाश्वत ) है । किन्तु इस मार्ग पर चलना कठिन है । वीर ( साहसी), संकल्प के धनी, पाप ( बुराइयों - Evils) से दूर रहने वाले पवित्र मानव ही इस सिद्धि पथ ( शुभ मार्ग - good) पर चल सकते हैं। 1
भगवान महावीर के इन शब्दों में सम्पूर्ण नीति का समावेश हो गया है। नीति का आधार और लक्ष्य शुभ अथवा परम शुभ है और इसकी प्राप्ति का मार्ग - शुभ की ओर गति प्रगति है । शुभ की ओर प्रगति और परम शुभ की प्राप्ति केवल साहसी व्यक्ति ही कर सकते हैं । उसके साथ भी शर्त यह है कि उनके हृदय में सत्य और शुभ प्रतिष्ठित हो ।
भारतीय और पश्चिमी सभी नीति- चिन्तकों ने सत् (right) और शुभ (good) को नीति-शास्त्र का आधार एवं लक्ष्य माना है। लौकिक रीति-रिवाजों का पालन, कर्तव्य - अकर्तव्य आदि जितनी भी बातें हैं, वे सब इस सत् और शुभ की सहचरी मात्र हैं, 'चाहिए' (ought) भी उस सत - शुभ की प्राप्ति में सहायक बनते हैं ।
इस सम्पूर्ण विवेचन के परिप्रेक्ष्य में कहा जा सकता है कि - नीतिशास्त्र जीवन को सफलतापूर्वक जीने की कला सिखाता है । यह मानव-जीवन के भौतिक, सामाजिक, पारिवारिक, वैयक्तिक, आध्यात्मिक आदि सभी पक्षों को नियमबद्ध, संतुलित और व्यवस्थित रखने की कला है।
संक्षेप में यह जीवन का नियामक विज्ञान है और यह विचार समग्र रूप से सभी नीति- विचारकों को इष्ट है ।
( यही अर्थ ल्यूमेन, पिशेल, हरमन जेकोबी आदि ने भी स्वीकार किया है ।
- उत्तरा चार्ल्स सरपेन्टियर, पृ. 292)
(घ) उत्तरा, 3 / 9; 7 / 25
2. सोच्चा जाणइ कल्लाणं, सोच्चा जाणइ पावगं । - दशवैकालिक, 4/11
3. (क) सोच्चा आउयं मग्गं बहवे परिभस्मइ । - उत्तरा, 3/9
(ख) सोच्चा णेआउयं मग्गं जं.... । - उत्तरा, 7 / 25
4. पणया वीरा महावीहिं सिद्धिपहं णेयाउयं ध्रुवं । - सूत्रकृतांग, 1/2/1/21