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________________ 72 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन सेथ (Seth) नीतिशास्त्र को शुभ के विज्ञान के रूप में 'आदर्श और 'चाहिए' का सर्वोत्कृष्ट विज्ञान मानता है । ' 'शुभ' से सेथ का भी वही अभिप्राय है जो मैकेन्जी का है। वह भी शुभ को 'परम शुभ की प्राप्ति में उपयोगी' मानता है । 'आदर्श' और 'चाहिए' से उसका भी अभिप्राय निययानुकूल आचरण से है । वस्तुतः ये दोनों परिभाषाएँ समान अर्थ की द्योतक हैं । काण्ट (Kant) नियमवादी है । वह कहता है "इस संसार के अन्दर और इससे बाहर भी, सदिच्छा को छोड़कर ऐसी कोई वस्तु नहीं है जिसे बिना किसी शर्त के, शुभ कहा जा सके ।" 2 नियमवादियों (Formalists) का अभिमत है कि नैतिक नियम स्वयं साध्य हैं, दूसरे शब्दों में आदर्श हैं । वे किसी अन्य आदर्श के लिए साधन नहीं कहे जा सकते । अतः काण्ट ने 'कर्तव्य के लिए कर्तव्य का सिद्धान्त' (Doctrine of duty for duty sake ) का सिद्धान्त प्रस्तुत किया। उसके मतानुसार goodwill ही एक मात्र शुभ (good ) है । उसका 'शुभत्व' परिणाम पर निर्भर नहीं है, अपितु वह स्वयं शुभ है। इसके अनुसार नैतिक नियम सहज प्रभुत्व सम्पन्न और सार्वभौम हैं । किन्तु सहजज्ञानवादियों के अनुसार नीतिशास्त्र (Right) का विज्ञान है । सहजज्ञानवादियों (Intutionists) के अनुसार नैतिक नियम बाध्य हैं, सभी परिस्थितियों में उनका पालन आवश्यक है । सत् ही नीतिशास्त्र का मूल प्रत्यय (concept) है। नैतिक नियमों के अनुसार चलना ही शुभ है, कर्तव्य है और इनके विपरीत आचरण अशुभ तथा अकर्तव्य । प्रयोजनवादियों (Teleologists) के मतानुसार 'शुभ' ही नीति शास्त्र का परम तत्व है। वे 'कर्तव्य कर्तव्य के लिए' न मानकर 'कर्तव्य नैतिक शुभ के लिए' मानते हैं। किसी कार्य के उचित-अनुचित का निर्णायक शुभ के मानदण्ड का प्रयोग ही हो सकता है। 1. As the science of the Good, it is the science par-excellence of the 'Ideal' and the 'Ought' —Seth, J. A. : Sudy of Ethical Principles, p.37 2. There is nothing in the world, or even out of it, that can be called good without qualification except a good-will -Kant
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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