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________________ श्री नाडलाई तीर्थ तीर्थाधिराज श्री नेमिनाथ भगवान, श्याम वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 75 सें. मी. एवं श्री आदिनाथ भगवान, श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 75 सें. मी. (श्वे. मन्दिर)। तीर्थ स्थल नाडलाई गाँव के बाहर लगभग 2 फर्लाग दूर अलग-अलग आमने-सामने पहाड़ियों पर। प्राचीनता है इसके प्राचीन नाम नड्डुलडागिका, नन्दकुलवती, नडुलाई, नारदपुरी आदि शास्त्रों में उल्लेखित हैं । श्री नारदजी ने मेवाड़ देश के इस विशाल भूमि को देखकर नारदपुरी नगर बसाया था व श्री कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न कुमार ने नजदीक पर्वत पर जिन मन्दिर बनवाकर श्री नेमिनाथ भगवान की सुन्दर प्रभावशाली प्रतिमा प्रतिष्ठित करवायी थी, ऐसा 'विजयप्रशस्ति महाकाव्य' में उल्ले खा आता है । इस पर्वत को यादवटेकरी कहते हैं । इस पर्वत के सम्मुख एक पर्वत है जिसे शत्रुजयटेकरी कहते हैं । इस टेकरी पर श्री आदिनाथ प्रभु का भव्य मन्दिर हैं । प्रतिमाजी पर वि. सं. 1686 में जीर्णोद्धार हुए का उल्लेख है । इसलिए ये दोनों पर्वत प्राचीन माने जाते हैं जिन्हें गिरनार व शत्रुजयावतार कहते हैं। वि. सं. 1195 में राजा रायपाल द्वारा उनको मिलने वाले कर का बीसवाँ हिस्सा इन मन्दिरों की सेवा पूजा के लिए भेंट करने का उल्लेख है । सत्रहवीं शताब्दी में श्री समय सुन्दरजी उपाध्याय द्वारा रचित तीर्थ-माला में इन मन्दिरों का उल्लेख किया है । पं. श्री शीलविजयजी ने भी तीर्थ माला में यहाँ का वर्णन किया है । गाँव का श्री आदिनाथ भगवान का मुख्य मन्दिर लगभग वि. सं. 964 में श्री यशोभद्रसूरीश्वरजी द्वारा अपनी साधनाशक्ति से आकाश मार्ग द्वारा वल्लभीपुर से लाया बताया जाता है । एक और उल्लेखानुसार यह मन्दिर खेड़नगर से लाया बताया जाता है । किसी समय यह नगरी अत्यन्त जाहोजलाली पूर्ण थी, ऐसा उपलब्ध उल्लेखों व शिलालेखों से प्रतीत होता है । कहा जाता है यहाँ से नाडोल तक सुरंग थी । विशिष्टता ॐ श्री नारदजी द्वारा बसाई इस श्री नेमिनाथ भगवान-नाडलाई 335
SR No.002331
Book TitleTirth Darshan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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