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नगरी में श्री कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न कुमार द्वारा इस तीर्थ को निर्मित बताये जाने के कारण यहाँ की विशेष महत्ता है । प्रकाण्ड विद्वान आचार्य श्री यशोभद्रसूरीश्वरजी एवं योगी तपेसरजी के बीच राजसभा में कई बार शास्त्रार्थ हुआ था व तपेसरजी अनेकों बार हारे थे । एक उल्लेखानुसार बाद में तपेसरजी ने श्री यशोभद्रसूरिश्वरजी के पास दीक्षा ग्रहण की थी, जो बाद में केशवसूरिजी (वासुदेवाचार्य) के नाम से प्रख्यात हुए । श्री केशवसूरिजी ने हथुडी के राजा विदग्धराज को प्रतिबोध देकर जैन धर्म अंगीकार करवाया था । __ श्री यशोभद्रसूरिजी द्वारा आकाश मार्ग से अपनी साधना द्वारा लाया हुआ श्री आदिनाथ भगवान का मन्दिर अभी भी विद्यमान है । एक शैव मन्दिर भी विद्यमान है, जो कहा जाता है, श्री केशवसूरिजी द्वारा दीक्षा ग्रहण पूर्व श्री यशोभद्रसूरीश्वरजी के साथ हुए शास्त्रार्थ के समय आकाश मार्ग से लाया गया था । जन साधारण में जसीया व केशीया के नाम से ये
आज भी प्रचलित हैं ।
श्री यशोभद्रसूरिजी व श्री केशवसुरिजी यहीं पर देवलोक सिधारे, जिनके स्तप यहाँ पर अभी भी विधमान है ।
श्री लावण्य समय रचित तीर्थ माला में इस घटना का वर्णन आता है ।
श्री यशोभद्रसूरि रास में अनेकों चमत्कारिक घटित घटनाओं के वर्णन हैं । अकबर प्रतिबोधक श्री हीरविजयसूरिजी के शिष्य श्री विजयसेनसूरिजी की यह जन्मभूमि है । वि. सं. 1607-08 में श्री हीरविजयसूरिजी को पन्यास व उपाध्याय की पदवी से यहीं पर अलंकृत किया गया था ।
अन्य मन्दिर 0 इनके अतिरिक्त पर्वतों की तलहटी में 7 मन्दिर और गाँव में चार मन्दिर हैं । गाँव के मुख्य मन्दिर में अधिष्ठायक देव चमत्कारिक
श्री आदिनाथ प्रभु-गाँव मन्दिर
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