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तीर्थ स्थल 2 एकलिंगजी (कैलाशपुरी) से एक मील दूर पहाड़ी की ओट में बाघेला तालाब किनारे ।
प्राचीनता 2 इसका प्राचीन नाम नागहृद था, ऐसा उल्लेख है । एक समय यहाँ मेवाड़ की राजधानी थी। सदियों तक यह स्थान जाहोजलालीपूर्ण रहा । यहाँ श्री पार्श्वनाथ भगवान का मन्दिर श्री सम्प्रतिराजा द्वारा बनवाने का उल्लेख श्री मुनिसुन्दरसूरीश्वरजी ने 'नागहृदतीर्थ स्तोत्र' में किया है। लगभग विक्रम की पांचवीं शताब्दी में शास्त्रविशारद आचार्य श्री समुद्रसूरिश्वरजी ने शास्त्रार्थ में विजयी होकर यह तीर्थ पुनः श्वेताम्बर संघ के अधीन किया था, ऐसा उल्लेख है। राजा श्री भोजराज ने मान्डवगढ़ में 'भारती भवन' महा-विद्यालय के प्रधानाचार्य कर्णाटकी श्री भट्ट-गोविन्द को उनकी कार्यकुशलता पर प्रसन्न होकर यह गाँव इनाम में दिया था, ऐसा उल्लेख मिलता है । मंत्री श्री पेथड़शाह द्वारा यहाँ श्री नेमिनाथ भगवान का मन्दिर बनाने का उललेख है । कहा जाता है किसी वक्त यहाँ 350 जिन मन्दिर थे । सायं आरती के वक्त इन मन्दिरों के घंटियों की मधुर-मधुर स्वर लहरी एक साथ ऐसी लगती थी मानों देवलोक में इन्द्रों द्वारा प्रभु की भक्ति हो रही हो । यहाँ से देवकुलपाटक तक सुरंग थी । कहा जाता
श्री आदिनाथ प्रभु-प्राचीन प्रतिमा
श्री नागहृद तीर्थ
तीर्थाधिराज श्री शान्तिनाथ भगवान, श्याम वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 270 सें. मी. (श्वे. मन्दिर)।
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मन्दिरों का दृश्य-नागहृद
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