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श्री राजनगर तीर्थ
करवाई थी, ऐसा उल्लेख है । उस समय यह मन्दिर नव मंजिल का था व इसकी ध्वजा के दर्शन बारह मील तक होते थे । कहा जाता है बादशाह औरंगजेब
के समय इस मन्दिर को राज शाही किला समझकर तीर्थाधिराज श्री आदिनाथ भगवान, पद्मासनस्थ तोप से तोड़ डाला था । आज इस मन्दिर की सिर्फ श्वेत वर्ण, लगभग 150 सें. मी., चतुर्मुख प्रासाद (श्वे. दो मंजिलें कायम रही हैं । मन्दिर के निचले भाग में मन्दिर) ।
भोयरे भी बने हुए हैं । तीर्थ स्थल काँकरोली से 1/2 कि. मी. दूर, विशिष्टता 8 यह मेवाड़ की पंचतीर्थी का एक राजसमन्द मुख्य मार्ग में एक पहाड़ी पर, जिसे तीर्थ-स्थान माना जाता है। श्री दयालशाह की शूरवीरता दयालशाह का किला कहते हैं ।
मेवाड़ के इतिहास में प्रसिद्ध है । इन्होंने अपनी बुद्धि, प्राचीनता महाराणा श्री राजसिंहजी ने यह
दीर्घ दृष्टि और शूरवीरता से राणा को जिन्दा बचा लिया गाँव अपने नाम पर बसाया था । महाराणा के शूरवीर
था, जिससे महाराणा के विश्वास पात्र मंत्री बन गये मंत्री ओशवाल वंशज श्री दयालशाह संघवी ने अपनी
थे । इन्होंने वीरता पूर्वक औरंगजेब से बदला लेकर एक करोड़ से अधिक रूपयों की विपुल धनराशि का
__जीत में पाई हुई ऊँटों लदी स्वर्ण संपत्ति भी राणा को सदुपयोग करके इस भव्य मन्दिर का निर्माण करवाकर
भेंट दीं । दयालशाह ने इस पहाड़ी पर मन्दिर बनवाने वि. सं. 1732 वैशाख शुक्ला 7 गुरुवार के शुभ दिन
की भावना प्रकट की । उसपर राणा ने सहर्ष मंजूरी आचार्य श्री विनयसागर सरीश्वरजी के सहस्ते प्रतिष्ठा प्रदान की । राजमहल की टेकरी के सन्मख स्थित इस
श्री आदीश्वर जिनालय-राजनगर
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