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ताड़पत्रों पर लिखवाने का उल्लेख मिलता हैं । श्री आयड तीर्थ
इसके बाद भी अनेकों प्रकाण्ड आचार्यों का यहाँ
पदार्पण हुआ हैं । यह मन्दिर बारहवीं शताब्दी का माना तीर्थाधिराज श्री आदीश्वर भगवान, पद्मासनस्थ, जाता हैं । श्वेत वर्ण (श्वे. मन्दिर) ।
यहाँ का अन्तिम जीर्णोद्धार वि. सं. 1995 में होकर तीर्थ स्थल 0 उदयपुर से लगभग एक कि. मी. प्रतिष्ठा आचार्य श्री विजयनीतिसूरीश्वरजी के सुहस्ते दूर आयड़ गाँव में ।
सम्पन्न हुई । अभी पुनः जीर्णोद्धार का काम प्राचीनता इसका प्राचीन नाम आघाट व चालू हैं । आहड़ था, ऐसा उल्लेख मिलता है । भट्टारक आचार्य विशिष्टता रेवती दोष की भयंकर बीमारी से श्री यशोभद्र सूरीश्वरजी के शिष्य श्री बलिभद्र सूरीश्वरजी
पीड़ित यहाँ के राजा श्री अल्लुराज की रानी द्वारा प्रतिबोधित श्री अल्लुराज (अल्लाट) दसवीं शताब्दी हरियदेवी की देह को हथंडी में विराजित आचार्य में यहाँ के राजा थे, ऐसा शिला-लेखों से प्रतीत होता श्री बलिभद्रसूरीश्वरजी ने वहीं से निरोग किया था, है । आचार्य श्री यशोभद्र सूरीश्वरजी द्वारा यहाँ जिससे प्रभावित होकर राजा व रानी ने उत्साहपूर्वक श्री पार्श्वनाथ भगवान के मन्दिर की प्रतिष्ठापना जैन-धर्म अंगीकार किया था । उनके मंत्री ने श्री करवाने का उल्लेख है । यह वृत्तान्त वि. सं. 1029 पार्श्वनाथ भगवान का मन्दिर बनवाया था, जिसकी पूर्व का है । ग्यारहवीं शताब्दी में हुए कवीश्वर प्रतिष्ठा श्री बलिभद्रसूरीश्वरजी के गुरू प्रकाण्ड आचार्य श्री धनपाल द्वारा रचित 'सत्यपुरमण्डन महावीरोत्साह' यशोभद्रसूरीश्वरजी के सुहस्ते हुई थी । में यहाँ के मन्दिरों का उल्लेख हैं ।
तेरहवीं शताब्दी में यहीं पर श्रावक हेमचन्द्र श्रेष्ठी ने तेरहवीं शताब्दी में राजा श्री जयसिंहजी के समय सारे आगम ताड़पत्रों पर लिखवाये थे । उस समय यहीं श्रावक श्री हेमचन्द्र द्वारा समग्र आगम ग्रन्थों को यहाँ पर आचार्य श्री जगच्चन्द्रसूरीश्वरजी द्वारा उग्र तपश्चर्या
श्रीआयड़ जैन तीर्थ.
श्री जैन श्वेलाम्बर महासभा
Awe-keralamne-MET
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मन्दिर-समूह का दृश्य-आयड़
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