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श्री केशरियाजी तीर्थ
तीर्थाधिराज श्री आदिनाथ भगवान, अर्द्ध पद्मासनस्थ श्याम वर्ण, लगभग 105 सें. मी. ।
तीर्थ स्थल ऋषभदेव गाँव में, पहाड़ों की ओट में। प्राचीनता * भव्य, चमत्कारी, भक्तों की मनोकामनाएँ पूर्ण करने वाली इस प्रतिमा की प्राचीनता व इतिहास के बारे में अनेकों मान्यताएँ हैं । उनमें यह भी एक है कि यह अलौकिक प्रतिमा बीसवें तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रतस्वामी भगवान के समय प्रतिवासुदेव लंकापति श्री रावण के यहाँ पूजित थी । पश्चात मर्यादा-पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्रजी अयोध्या लेकर आये। बाद में उज्जैन में रही । पश्चात दैविक शक्ति से वटप्रदनगर (बडोदा) के बाहर वटवृक्ष के नीचे प्रकट हुई। (जहां अभी भी प्रभु के चरण स्थापित हैं) कुछ वर्षों तक वटप्रदनगर में पूजी जाने के बाद पुनः दैविकशक्ति द्वारा यहाँ से लगभग एक कि. मी. दूर एक वृक्ष के नीचे प्रकट हुई, जहाँ पर भी प्रभु के चरण स्थापित है व वार्षिक मेले का विराट जुलुस वही पर विसर्जित होता है ।
इस मन्दिर के बारे में कहा जाता है कि मन्दिर प्रथम ईंटों का बना व बाद में पत्थरों का बना था । वि. सं. 1831 में जीर्णोद्धार होने के प्रमाण मिलते हैं। उसके पश्चात् भी जीर्णोद्धार होने के उल्लेख हैं । समय-समय पर अनेकों यात्री संघ व आचार्यगण यहाँ दर्शनार्थ आने के उल्लेख हैं ।
विशिष्टता यह मेवाड़ राज्य में जैनियों का एक मुख्य तीर्थ-स्थान हैं । मेवाड़ के राणा हरदम प्रभ के अनुयायी रहे व श्रद्धा-भक्ति से प्रभु के चरणों में दर्शनार्थ आते थे । राणा फतेहसिंहजी ने प्रभु के लिए स्वर्णमयी रत्नों जड़ित अमूल्य आँगी भी भेंट की थी । अभी भी यह आँगी नकरे से चढ़ायी जाती है । यहाँ पर जैनेतर भी श्रद्धा व भक्ति पूर्वक हमेशा आते रहते हैं। भील समुदाय में प्रभु काला बाबा के नाम से प्रचलित हैं।
यहाँ नयी-नयी चमत्कारिक घटनाओं का अनेकों भक्तों द्वारा वर्णन किया जाता है । भक्तगण जो भी भावनाएँ लेकर आते हैं उनकी इच्छाएँ पूर्ण होती हैं । यहाँ पर केशर चढ़ाने की मानता सदियों से चली आ रही है व हमेशा अत्यधिक मात्रा से केशर चढ़ती है ।
श्री केशरियाजी मन्दिर-ऋषभदेव
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