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________________ श्री जिनदत्त को श्री अधिष्ठायक देव द्वारा स्वप्न में दिये संकेत के आधार पर नाकोरनगर के निकट सिणदरी गाँव के पास एक तालाब से प्रकट हुई थी, जिसे अति ही उल्लास व विराट जुलूस के साथ यहाँ लाकर वि. सं. 1429 में भट्टारक आचार्य श्री उदयसूरीश्वरजी के सुहस्ते प्रतिष्ठित करवाई गई । उस दिन से इस तीर्थ का नाम नाकोड़ा पड़ा । वि. सं. 1511 के जीर्णोद्धार के समय यहाँ के प्रकट प्रभावी साक्षात्कार अधिष्ठायदेव श्री भैरवजी की स्थापना आचार्य श्री कीर्तिरत्नसूरिजी द्वारा करवाई गई, जो इस तीर्थ की रक्षा करते हैं व भक्तों की मनोकामनाएँ पूर्ण करते हैं । सं. 1564 में ओशवाल वंशज छाजेड गोत्रिय सेठ जुठिल के प्रपौत्र सेठ सदारंग द्वारा जीर्णोद्धार होने का उल्लेख है । वि. सं. 1638 में इस मन्दिर के पुनरुद्धार हुए का उल्लेख है । लगभग सत्रहवीं शताब्दी तक यहाँ की जाहोजलाली अच्छी रही । उसके बाद श्रेष्ठी मालाशाह संकलेचा के भ्राता श्री नानकजी ने यहाँ के राजकुमार का अप्रिय व्यवहार देखकर गाँव छोड़ने उसके पश्चात् इस गाँव की जनसंख्या दिन प्रति दिन घटने लगी । आज जैनियों का कोई घर नहीं है, लेकिन श्री संघ द्वारा हो रही तीर्थ की व्यवस्था उल्लेखनीय है । सत्रहवीं सदी के बाद सं. 1865 में जीर्णोद्धार होने का उल्लेख है । उसके पश्चात् भी समय-समय पर आवश्यक जीर्णोद्धार हुए । विशिष्टता ॐ परमपूज्य श्री स्थूलिभद्रस्वामीजी द्वारा प्रतिष्ठित इस तीर्थ की महान विशेषता है । पार्श्वप्रभु की प्राचीन प्रतिमा सुन्दर व अति ही चमत्कारी है । यहाँ के अधिष्ठायक श्री भैरवजी महाराज साक्षात हैं व उनके चमत्कार जगविख्यात हैं । हमेशा सैकड़ों यात्री अपनी अपनी भावना लेकर आते हैं । उनकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं । यहाँ मन्दिर के अतिरिक्त कोई घर नहीं है । परन्तु यात्रियों का निरन्तर आवागमन रहने के कारण यह स्थल नगरी सा प्रतीत होता है । प्रतिवर्ष श्री पार्श्वप्रभु के जन्म कल्याणक दिवस पौष कृष्णा दशमी को विराट मेले का आयोजन होता है । अन्य मन्दिर इसके अतिरिक्त मन्दिर के अहाते में ही 4 मन्दिर व बाहरी भाग में एक मन्दिर एक दादावाड़ी व एक गुरु मन्दिर हैं । बाहरी भाग में एक और भव्य समवसरण मन्दिर का निर्माण कार्य चालू है। अन्दर के मन्दिरों में श्री आदिनाथ भगवान व श्री शांतिनाथ भगवान के मन्दिर लगभग सोलवी । सत्रहवीं शताब्दी के माने जाते हैं । - कला और सौन्दर्य * यहाँ भोयरों में बारहवीं सदी से सत्रहवीं सदी तक की प्राचीन प्रतिमाएँ दर्शनीय है । मूलनायक भगवान की प्रतिमा का तो जितना वर्णन करें कम है । एक बार आने वाले यात्री की भावना पुनः आने की सहज ही में हो जाती है । यह स्थल जंगल में छट्टायुक्त पहाड़ियों के बीच एकान्त में रहने के कारण यहाँ का प्राकृतिक दृश्य देखते ही बनता सारे जैन कुटुम्बीजनों के साथ गाँव छोडकर चले गये । मार्ग दर्शन * यहाँ से नजदीक का रेल्वे स्टेशन बालोतरा 13 कि. मी. दूर हैं । वहाँ पर टेक्सी व बसों की सुविधा है । यहाँ जालोर-बालोतरा सड़क मार्ग में जसोल होकर आना पड़ता है । यहाँ से जोधपुर, सिरोही, फालना, देसूरी, जालौर, बाड़मेर, राणकपुर, पाली, उदयपुर व अहमदाबाद के लिए सीधी बसें हैं । मन्दिर के बाहर ही बस स्टेण्ड है । आखिर तक पक्की दुर दृश्य-नाकोड़ा 304
SR No.002331
Book TitleTirth Darshan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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