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________________ विरतरगच्छीयपपू जीमको शुशि की छप. बसंती जी मसा एवं पूधर्म जैदानिवासीशा दी तपार्थेश्री श्री आदीश्वर भगवान-विजयपुरपत्तन यहाँ पर प्रायः सभी प्रकाण्ड विद्वान आचार्य भगवंतों व मुनि भगवंतों के समय-समय पर चातुर्मास हुवे हैं। उन्होंने यहाँ के श्रावकों की भूरी-भूरी प्रशंसा की है । आचार्य श्री यतिन्द्रसूरीश्वरजी ने वि. सं. 1987 में लिखा है कि यहाँ के श्रावक भावुक व श्रद्धालु हैं और योग्य साधु-साध्वियों की अच्छी कदर करने वाले हैं । श्री ज्ञानसुन्दरजी महाराज (घेवरमुनिजी) ने यहाँ रहकर लगभग 375 से ज्यादा धर्म से सम्बंधित स्तवनों आदि की पुस्तकें लिखी थी जो श्री रत्नप्रभाकर ज्ञान पुष्पमाला के नाम विख्यात हुई । वे पुस्तकें आज भी एतिहासिक व अति ही महत्वपूर्ण मानी जाती है । श्री छगनसागरजी, हरीसागरजी, कंचनविजयजी, कमलविजयजी आदि 18 मुनि भगवन्तों व 112 साध्वीगणों की यह जन्म भूमि है । वर्तमान में जगह-जगह प्रभु भक्ति का प्रचार व मन्दिरों की प्रतिष्ठा करवाने वाले, कच्छ वागड देशोद्वारक, अध्यात्म योगी प. पू. आचार्य भगवंत श्री कलापूर्णसूरीश्वरजी म. सा. ने भी यहाँ जन्म लेकर इस भूमी को पावन 284 श्री पार्श्वनाथ भगवान, प्राचीन- फलोदी किला बनाया है । हमारे प्रांगण में निर्मित श्री जैन प्रार्थना मन्दिर की प्रतिष्ठा भी आप ही के सुहस्ते वि. सं. 2050 वैशाख शुक्ला पंचमी को सम्पन्न हुई थी । अन्य मन्दिर वर्तमान में इसके अतिरिक्त और 10 मन्दिर 1 रत्नप्रभसूरिगुरु मन्दिर व 4 दादावाड़ीयाँ है। निकट के गांव खीचन, लोहावट व आऊ में भी प्राचीन जैन मन्दिर हैं जो अति दर्शनीय है । कला और सौन्दर्य शांतिनाथ भगवान के मन्दिर में हस्तलिखित स्वर्ण कला अति ही विशिष्ट व अनूठी है जो प्राचीन काल के कला का स्मरण कराती हैं । ऐसी कला के दर्शन अन्यत्र दुर्लभ है । अन्य सभी मन्दिरों में कला के कुछ न कुछ नमूने अवश्य मिलेंगे, जिनमें श्री आदीश्वर भगवान एवं श्री गोड़ी पार्श्वनाथ भगवान के मन्दिर बहुत ही अनूठे ढंग से बने है। आदिनाथ प्रभु का मन्दिर भी प्राचीनता में लगभग श्री शांतिनाथ भगवान मन्दिर के समकालीन है, जो बाजार के बीच चारों तरफ रास्तों के साथ बना है ऐसा कम जगह मिलेगा । श्री गोडी पार्श्वप्रभु का भव्य मन्दिर अपनी विशालता व तीन पोल के साथ शहर के लगभग बीच में बहुत ही अनुपम ढंग से निर्मित है, जो देखने योग्य है । इस जगह को त्रीपोलीया कहते है । प्रायः सभी यात्री इस मन्दिर का दर्शन अवश्य करते हैं । मार्ग दर्शन यहाँ का रेल्वे स्टेशन फलोदी इस
SR No.002331
Book TitleTirth Darshan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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