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श्री तिंवरी तीर्थ
तीर्थाधिराज श्री वासुपूज्य भगवान, पद्मासनस्थ, श्वेत वर्ण, (श्वे. मन्दिर) ।
तीर्थ स्थल तिंवरी गाँव के मध्य ।
प्राचीनता यह तीर्थ लगभग ओसियाँ के समकालीन माना जा सकता है । ओसियाँ तीर्थ के उल्लेखानुसार ओसियाँ नगरी का विस्तार तिंवरी तक था, अतः यह सिद्ध होता है कि उस समय भी यह नगर आबाद था । यहाँ की कला भी ओसियाँ के समकालीन प्रतीत होती है ।
इस मन्दिर के बारे में कहा जाता है कि वि. सं. 222 में यहाँ एक किसान का हल भूतल में स्थित इस मन्दिर से टकरा गया था । खोदने पर इस मन्दिर का शिखर दिखाई दिया व तत्पश्चात् विधिवत खुदाई करने पर भव्य मन्दिर पाया गया जो आज भी गाँव के बीच उसी स्थान पर विद्यमान है ।
यह पता लगाना मुश्किल है कि इस मन्दिर का निर्माण कब हुवा व किसने करवाया था । परन्तु यह जरुर है कि इस कलात्मक मन्दिर का निर्माण लगभग 1800 वर्ष पूर्व हुवा होगा ।
हर जगह आवश्यकता पड़ने पर समय-समय जीर्णोद्धार होता है, उसी प्रकार यहाँ भी जीर्णोद्धार बार-बार हुआ। पूर्व में यहाँ के मूलनायक श्री पार्श्वनाथ भगवान थे । परन्तु कोई कारणवंस 700 वर्ष पूर्व जीर्णोद्धार के समय श्री वासुपूज्य भगवान विराजमान करवाये गये जो आज विद्यमान है ।
विशिष्टता * यहाँ की प्राचीनता व गौरवपूर्ण इतिहास यहाँ की विशिष्टता है। यह स्थान तंवर राजाओं की राजधानी रहा माना जाता है। अतः संभवतः उन्हीं के नाम पर गाँव का नाम तिंवरी पड़ा हो ।
पूर्व काल में जगह जगह कई राजा लोग जैन धर्म के उपासक बने व धर्मप्रभावना के अनेकों कार्य किये। मन्दिरों के निर्माण व जीर्णोद्धार आदि में भी भाग
श्री वासुपूज्य मन्दिर दृश्य-तिवरी
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