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________________ जिसका उल्लेख वि. सं. 1662 में कवि श्री समयसुन्दरजी उपाध्याय ने अपने रचित श्री गांगाणी मण्डन में विस्तृत रूप से किया है । इसका उल्लेख 'वीर वंशावली' में भी आता है । इन प्रतिमाओं में से श्री पद्मप्रभ भगवान की प्रतिमा श्री संप्रतिराजा ने वीर सं. 273 माघ शुक्ला 8 के शुभ दिन आर्य श्री सुहस्तीसूरीश्वरजी के सुहस्ते प्रतिष्ठा करवायी थी । एक और श्वेतवर्णमयी श्री पार्श्वप्रभु की प्रतिमा सम्राट चन्द्रगुप्त द्वारा भरवाने का उल्लेख है । इन सब प्रतिमाओं का आज पता नहीं । संभवतः आक्रमणकारियों के भय से पुनः भूमिगत कर दी गयी हों । दुधेला तालाब और खोखर मन्दिर आज भी विद्यमान हैं । वि. की नौवी शताब्दी में उपकेशनगर के श्रेष्ठीवर श्री बोसट द्वारा इस मन्दिर के जीर्णोद्धार करवाने का उल्लेख है । वि. की बारहवीं शताब्दी में भूरंटों ने इस मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया था । ___चौदहवीं शताब्दी में ओसियाँ के आदित्यागान गोत्रीय शाह सारंग सोनपाल द्वारा जीर्णोद्धार करवाने का उल्लेख मिलता है । विक्रम की सोलहवीं शताब्दी में बीकानेर के श्रावकों द्वारा जीर्णोद्धार करवाने का उल्लेख है । और भी अनेकों बार यहाँ का जीर्णोद्धार हुआ होगा । अंतिम जीर्णोद्धार वि. सं. 1982 में होने का उल्लेख है । प्रतिमाजी पर वि. सं. 1914 का लेख उत्कीर्ण है । जीर्णोद्धार के समय नई प्रतिमा स्थापित की गयी प्रतीत होती है । श्री आदिनाथ भगवान की एक सर्वधातुमयी प्रतिमा पर वि. सं. 937 का लेख उत्कीर्ण हैं। यह प्रतिमा अति ही चमत्कारी है । ऊपरी मंजिल में श्री धर्मनाथ भगवान की मूर्ति पर वि. सं. 1684 का लेख उत्कीर्ण हैं । विशिष्टता * चौदह पूर्वधारी श्री भद्रबाहुस्वामीजी के सुहस्ते सम्राट चन्द्रगुप्त द्वारा व आर्य श्री सुहस्तीसूरीश्वरजी के सुहस्ते राजा संप्रति द्वारा प्रतिष्ठित मन्दिरों का क्षेत्र रहने के कारण इसकी मुख्य विशेषता है। सं. 1662 में कविवर श्री समयसुन्दरजी उपाध्याय ने बड़े ही सुन्दर ढंग से यहाँ की व्याख्या की है । यहाँ पाटोत्सव का मेला प्रतिवर्ष होली के बाद चैत्र कृष्णा श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ भगवान-गांगाणी श्री गांगाणी तीर्थ तीर्थाधिराज श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ भगवान, श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 40 सें. मी. (श्वे. मन्दिर) । तीर्थ स्थलगांगाणी गाँव में । प्राचीनता इस नगरी का प्राचीन नाम अर्जुनपुरी बताया जाता है । बाद में गांगाणक कहते थे । यह अति प्राचीन क्षेत्र माना जाता है । किसी वक्त यह एक विराट नगरी थी । वि. सं. 1662 ज्येष्ठ शुक्ला 12 के दिन यहाँ दुधेला तालाब के पास खोखर नामक मन्दिर के एक तलघर में से 65 प्रतिमाएँ निकली थीं, 274
SR No.002331
Book TitleTirth Darshan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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