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श्री नागौर तीर्थ
तीर्थाधिराज श्री आदिनाथ भगवान, पद्मासनस्थ (श्वे. मन्दिर) ।
तीर्थ स्थल नागौर गाँव में सिंघवियों की पोल के पास ।
प्राचीनता ® प्राचीन ग्रन्थों में इसका नाम नागपुर रहने का उल्लेख है । किसी समय यह जैन-धर्म का मुख्य केन्द्र था । कण्हमुनि के शिष्य आचार्य श्री जयसिंहसूरीजी द्वारा रचित "धर्मोपदेशमाला" में विक्रम की नवमी सदी में अनेकों जिन मन्दिर यहाँ रहने का उल्लेख है । श्री कण्हमुनि द्वारा सं.919 में श्री महावीर भगवान के मन्दिर की प्रतिष्ठापना करवाने का उल्लेख है ।
विक्रम की सत्रहवीं सदी में आचार्य श्री विशालसुन्दरसूरीश्वरजी के शिष्य द्वारा रचित "नागौरचेत्यपरिपाटी” में यहाँ सात मन्दिर रहने का उल्लेख है । वर्तमान में स्थित मन्दिरों में विक्रम सं. 1515 में निर्माणित श्री शान्तिनाथ भगवान के मन्दिर में एक धातु-प्रतिमा पर सं. 1216 का लेख उत्कीर्ण है । हीरावाड़ी में श्री आदिनाथ भगवान का मन्दिर सं. 1596 में निर्माणित होने का उल्लेख है ।
श्री आदीश्वर भगवान का यह मन्दिर सोलहवीं सदी में निर्माणित माना जाता है, जो बड़े मन्दिर के नाम से विख्यात है । अन्य मन्दिर सत्रहवीं सदी पश्चात् के हैं ।
विशिष्टता श्री आम राजा के पौत्र श्री भोजदेव के राज्यकाल में वि. सं. 915 भादरवा शक्ल पंचमी के शुभ दिन श्री कण्हमुनि के शिष्य आचार्य श्री जयसिंहसूरीश्वरजी ने “धर्मोपदेशमाला" ग्रन्थ की रचना यहीं पर एक जिनालय में की थी ।
बारहवीं सदी में आचार्य श्री वादीदेवसरीश्वरजी के यहाँ पदार्पण पर राजा अर्णोराज ने भव्य स्वागत-समारोह का आयोजन किया था, जो उल्लेखनीय है ।
कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्य को आचार्य-पद से यहीं पर विभूषित करके एक विराट समारोह का आयोजन किया गया था । मानद श्रेष्ठी धनद ने उक्त समारोह के अपूर्व अवसर पर अपनी चंचल लक्ष्मी का 264
मुक्त हस्तों से सदुपयोग किया, जो उल्लेखीय है । __ श्री पार्श्वचन्द्रसूरिगच्छ की स्थापना यहीं पर हुई । आज भी यहाँ तपागच्छ, खरतरगच्छ, पार्श्वचन्द्रसूरिगच्छ व लोंकागच्छ के उपाश्रय हैं । विक्रम की बारहवीं सदी में यहाँ वरदेव पल्लीवाल नाम के धर्मश्रद्धालु श्रावक हुए उनके पुत्र आसधर ने व उनके पुत्र नेमड़, आभट, माणिक, सलखण व थिरदेव, गुणधर, जगदेव, भुवणा द्वारा श्री शत्रुजय, गिरनार आबू-देलवाड़ा, जालोर, तारंगा, प्रहलादनपुर, पाटण, चारुप आदि विभिन्न तीर्थ स्थानों पर करवाये जीर्णोद्धार आदि के कार्य अति प्रशंसनीय हैं । इन्होंने और भी अनेकों जन-कल्याण के कार्यों में भाग लिया जो उल्लेखनीय है । इस प्रकार अनेकों धर्मवीर श्रावकों की जन्मभूमि होने व प्रकाण्ड आचार्यों का पदार्पण होने से धर्मप्रभावना के अनेकों कार्य सम्पन्न होने के कारण यहाँ की मुख्य विशेषता है ।
अन्य मन्दिर वर्तमान में इसके अतिरिक्त सात मन्दिर एक गुरु मन्दिर व दो दादावाड़ीयाँ हैं ।
कला और सौन्दर्य यहाँ के मन्दिरों में प्राचीन प्रतिमाओं के दर्शन होते हैं । इस मन्दिर में काष्ठ से निर्मित एक दरवाजे की कला अति ही दर्शनीय है । मन्दिर में काँच का काम अति ही सुन्दर ढंग से किया हुआ है ।
मार्ग दर्शन यहाँ का रेल्वे स्टेशन नागौर, मन्दिर से लगभग 1 कि. मी. दूर है । स्टेशन पर व गाँव में आटों व टेक्सी की सुविधा है । मन्दिर तक कार जा सकती है । रास्ता तंग रहने के कारण बस को लगभग 4 कि. मी. दूर ठहरानी पड़ती हैं । सड़क मार्ग द्वारा यह स्थल लगभग जोधपुर से 135 कि. मी. व बिकानेर से 115 कि. मी. दूर है ।
सुविधाएँ ठहरने के लिए रेल्वे स्टेशन के पास जैन धर्मशाला है । जहाँ बिजली, पानी की सुविधा है। भोजन आदि की व्यवस्था श्री अमरचंद माणकचंद बेताला तपागच्छीय जैन भवन में पूर्व सूचना देने पर हो सकती है ।
पेढ़ी श्री जैन श्वेताम्बर मन्दिर मार्गी ट्रस्ट (रजि) बड़ा जैन मन्दिर, पोस्ट : नागौर - 341 001. जिला : नागौर, प्रान्त : राजस्थान, फोन : 01582-40318, 42281 पी.पी.