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श्री मुण्डस्थल तीर्थ
तीर्थाधिराज श्री महावीर भगवान, कायोत्सर्ग मुद्रा, श्वेत वर्ण, लगभग 1.07 मीटर ( श्वे. मन्दिर ) । तीर्थ स्थल मुंगयला गाँव के बाहरी भाग में। प्राचीनता यह तीर्थ भगवान महावीर के समय का माना जाता है। कहा जाता है कि भगवान महावीर ने जब अपनी छद्मावस्था में इस अर्बुदगिरि की भूमि में विचरण किया तब मुण्डस्थल में नंदीवृक्ष के नीचे काउसग्ग ध्यान में रहे थे । विक्रम की तेरहवीं शताब्दी में आचार्य श्री महेन्द्रसूरिजी द्वारा रचित " अष्टोत्तरी तीर्थ माला" में भी इसका वर्णन है। इस तीर्थ माला में यह भी कहा गया है कि श्री पूर्णराज नामक राजा ने जिनेश्वर की भक्ति के कारण महावीर भगवान के जन्म के बाद 37 वें वर्ष में एक प्रतिमा बनाई थी । एक शिलालेख पर भगवान महावीर का छद्मावस्था काल में यहाँ काउसग्ग ध्यान में रहने का व पूर्णराज राजा
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द्वारा भगवान की प्रतिमा निर्मित करवाकर श्रीकेशीस्वामी के सुहस्ते प्रतिष्ठित करवाने का उल्लेख है । उपरोक्त तथ्यों के सर्वेक्षण की आवश्यकता है ताकि काफी जानकारी प्राप्त हो सके । विक्रम सं. 1216 वैशाख कृष्णा 5 को यहाँ स्तम्भों के निर्माण करवाने का उल्लेख है। विक्रम सं. 1389 में श्री धांधल द्वारा मुण्डस्थल में महावीर भगवान के मन्दिर में जिनेश्वर भगवान की युगल प्रतिमाएँ बनवाकर आचार्य श्री कक्कसूरिजी के सुहस्ते प्रतिष्ठित करवाने का उल्लेख
है ।
विक्रम की चौदहवीं शताब्दी में श्री जिनप्रभसूरिजी द्वारा रचित "विविध तीर्थ कल्प" में इस तीर्थ का उल्लेख है ।
विक्रम सं. 1442 में राजा श्री कान्हड़देव के पुत्र श्री बीसलदेव द्वारा वाड़ी के साथ कुआँ भेंट करने का उल्लेख मिलता है । विक्रम सं. 1501 में तपागच्छीय श्री लक्ष्मीसागरजी महाराज को मुण्डस्थल में उपाध्याय की पदवी दी गयी ।
श्री महावीर भगवान मन्दिर-मुण्डस्थल