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श्री अजारी तीर्थ
तीर्थाधिराज श्री महावीर भगवान, पद्मासनस्थ, श्वेत वर्ण, लगभग 75 सें. मी. (श्वे. मन्दिर ) । तीर्थ स्थल अजारी गाँव के मध्य । प्राचीनता यह अति प्राचीन स्थान है । इस गाँव की व मन्दिर की प्राचीनता का पता लगाना कठिन - सा है । शास्त्रों में उल्लेखानुसार कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमाचन्द्राचार्य ने इस गाँव के निकट श्री मार्कन्डेश्वर में श्री सरस्वती देवी के मन्दिर में सरस्वती देवी की आराधना की थी । इस मन्दिर के निकट एक बावड़ी में विक्रम सं. 1202 का लेख उत्कीर्ण है, जिसमें परमार राजा यशोधवल का वर्णन है । यहाँ पर कुछ धातु प्रतिमाओं पर ग्यारहवीं, बारहवीं व तेरहवीं सदी के लेख उत्कीर्ण हैं । प्रतिमाजी
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पर कोई लेख उत्कीर्ण नहीं है। प्रतिमाजी की कलाकृति से प्रमाणित होता है कि यह प्रतिमा अति प्राचीन है । इस भव्य बावनजिनालय मन्दिर में सारी प्रतिमाएँ राजा संप्रतिकाल की प्रतीत होती है । मन्दिर में कुछ आचार्य भगवन्तों की भी मनोज्ञ प्रतिमाएँ हैं । एक प्रतिमा अति ही सुन्दर है, जिसपर सं. 12 का लेख उत्कीर्ण हैं । यहाँ के अन्तिम जीर्णोद्धार के समय प्रतिष्ठा आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय रामचन्द्रसूरिजी की पावन निश्रा में हुवे का उल्लेख है ।
विशिष्टता कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमाचन्द्राचार्य ने यहाँ के निकट श्री मार्कन्डेश्वर में श्री सरस्वती देवी की आराधना की थी, तब श्री सरस्वती देवी ने प्रसन्न होकर इस मन्दिर में श्री हेमाचन्द्राचार्य को प्रदक्षिणा देते वक्त साक्षात् दर्शन दिया था । कहा जाता है श्री हेमचन्द्राचार्य ने इस मन्दिर में श्री सरस्वती देवी की प्रतिमा की स्थापना करवायी थी जो कि अभी भी
बावन जिनालय का मनोहर दृश्य अजारी