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श्री मीरपुर तीर्थ
तोरणों, व स्थभों आदि पर की गयी शिल्पकला लगभग हजार वर्ष प्राचीन मानी जाती है । हो सकता है एक
हजार वर्ष पूर्व जीर्णोद्धार होकर इन शिल्पकला के तीर्थाधिराज 2 श्री भीड़भंजन पार्श्वनाथ नमूने स्थंभों आदि पर प्रस्तुत किये गये हों । वि. सं. भगवान, श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 90 सें. मी. 1328 में हस्तलिखित 'शतपदिका' प्रशस्ति में भी यहाँ (श्वे. मन्दिर) ।
के पल्लीवाल श्रेष्ठियों का उल्लेख आता है। किसी तीर्थ स्थल मीरपुर गाँव से लगभग 2 कि. समय यह एक विराट नगरी रही होगी, ऐसा यहाँ मी. बाहर जंगल में तीनों तरफ वनयुक्त पहाड़ों के इधर-उधर बिखरे अवशेषों आदि से अनुमान लगाया बीच।
जाता है । अभी भी पुनः जीर्णोद्धार हुवा है ।। प्राचीनता ॐ वि. सं. 808 में हमीर द्वारा इस विशिष्टता है यहाँ की प्राचीन शिल्पकला देखते गाँव को बसाने का उल्लेख है । इसका हमीरपुर, ही आबू-देलवाड़ा, कुम्भारिया आदि का स्मरण हो आता हमीरगढ़ के नाम से भी उल्लेख मिलता है । लेकिन है, यहाँ शिखर पर उत्कीर्ण कला तो आबू से भी यह मन्दिर इससे भी प्राचीन है, राजा सम्प्रति द्वारा निराली है । यह तीर्थ अपनी प्राचीनता, कला व निर्मित हुआ था, ऐसा 'वीरवंशावली' में उल्लेख है । अद्धितीय वातावरण में एकान्त स्थान पर रहने के वि. सं. 821 में आचार्य श्री जयानन्दसूरीश्वरजी के कारण अपना विशेष स्थान रखता है । प्रतिवर्ष पौष सदुपदेश से मंत्रीश्वर श्री सामन्त द्वारा इस मन्दिर का कृष्णा 10, चैत्री पूर्णिमा व कार्तिक पूर्णिमा को मेले का जीर्णोद्धार करवाने का उल्लेख है । यहाँ पर गुम्बजों, आयोजन होता है ।
श्री पार्श्वनाथ जिनालय का सुन्दर दृश्य-मीरपुर
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