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________________ जिसपर वि. सं. 1244 माघ शुक्ला प्रतिपदा का लेख श्री सेवाड़ी तीर्थ उत्कीर्ण है । विशिष्टता वि. सं. 1172 के शिलालेख में तौथोधिराज श्री शान्तिनाथ भगवान, चौहान राजा श्री कटुकराज के सेनानायक श्री यशोदेव पद्मासनस्थ, श्वेत वर्ण 127 सें. मी. (श्वे. मन्दिर) । द्वारा इस जिनालय के एक गोखले में श्री शान्तिनाथ तीर्थ स्थल * गाँव के मध्य बाजार में । भगवान की प्रतिमा प्रतिष्ठित करवाये जाने का उल्लेख प्राचीनता इसका प्राचीन नाम शतवाटिका, शतवापिका, समीपाटी, सीमापाटी व सिव्वाडी होने का उस समय यह एक समृद्धशाली शहर था । यहाँ शिलालेखों में उल्लेख है । वि. सं. 1167, 1172 के एक सौ बावड़ियाँ थीं । आज भी जेतल नाम की अति व अन्य 5 शिलालेख, जो मन्दिर में उत्कीर्ण हैं, विशाल व सुन्दर प्राचीन बावड़ी विद्यमान है । युवराज ऐतिहासिक महत्व के हैं । श्री सामन्तसिंह के वि. सं. 1238 के ताम्रपत्र में वि. सं. 1172 के शिलालेख में यहाँ के मूलनायक (जो सेवाड़ी तीर्थ से सम्बन्धित है) समीपाटी के अनिल श्री महावीर भगवान रहने का उल्लेख हैं । संवत् । विहार में भगवान श्री पार्श्वनाथ के चैत्य का होना 2014 में जीर्णोद्धार के समय श्री शान्तिनाथ भगवान अंकित है । इस चैत्य की खोज के सिलसिले में गाँव की प्राचीन प्रतिमा मूलनायक रूप में प्रतिष्ठित की गई। से 17 कि. मी. दूर अटेरगढ़ दुर्ग के कुछ भग्नावशेष इस मन्दिर में सभी प्रतिमाएँ तेरहवीं शताब्दी की। प्राप्त हुए हैं, जिससे वहाँ जैन मन्दिर होने की प्रतीत होती है । किसी पर लेख उत्कीर्ण नहीं है । सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता । संडेरकगच्छीय आचार्य श्री यशोभद्रसूरीश्वरजी की परम्परा राजस्थान के पुरातत्व-विभाग का ध्यान इस स्थल की के श्री गुणरत्नसूरिजी की प्रतिमा विशेष दर्शनीय है, खुदाई के लिए आकर्षित करके खुदाई करवाने पर ऐतिहासिक सामग्री उपलब्ध हो सकती है । श्री शान्तिनाथ जिनालय-सेवाड़ी 366
SR No.002331
Book TitleTirth Darshan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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